Sunday, May 11, 2025
युद्ध के बाद की कुछ कवितायें
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झरती हुई पत्तियां -MARGARET POSTGATE COLE (November 1915) आज एक ठहरी हुई दोपहर में मैंने पेड़ों से झरते हुए देखा कत्थई पत्तियों को कोई हवा ...
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Friday, May 9, 2025
शिक्षा और सम्मान पर तो सबका बराबर हक़ है- संगीता फ़रासी
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उत्तराखंड के श्रीनगर शहर की एक ख़ूबसूरत पहाड़ी पर एक स्कूल है, राजकीय प्राथमिक विद्यालय बहड़। इस स्कूल में एक कहानी लिखी जा रही है। लिख रही है...
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Monday, May 5, 2025
'कबिरा सोई पीर है'- अनसुनी आवाजों की दास्तान
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सूरज की किरन सिर पर से टप्पा खाकर जमीन पर लुढ़क गयी थी। ठीक उसी जगह जहां रात भर खिलखिलाने के बाद ऊँघते हुए मोगरे झरे पड़े थे और गिलहरियों की उ...
Monday, April 21, 2025
मेरे भीतर पाखंड भरा है
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'मैं ख़ुद के भीतर चल रही इस उलझन को समझ नहीं पा रहा हूँ तृप्ति। मुझे लगता था मैं काफी लिबरल हूँ, लेकिन इस एक घटना ने मेरी अब तक अपने बा...
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Wednesday, April 16, 2025
कबिरा सोई पीर है- सामाजिक विषमताएं उभरती हैं पात्रों के अंतर्द्वंद्व में
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- सुरेखा भनोट इंतजार के बाद आ ही गया 'कबिरा सोई पीर है' मेरे हाथों में भी। और एक ही दिन में चार बार शांत वातावरण ढूंढकर इस बेहद सुं...
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