Sunday, October 24, 2021

कथा नीलगढ़-सपनों को सहेजने की कथा



इतवार की सुबह जाने क्यों हमेशा जल्दी हो जाती है हालाँकि इच्छा में वो देर से होना चाहती है. कि इस दिन रोज की भागदौड़ जो नहीं होती. लेकिन इस दिन की सुबह को इत्मिनान से महसूस किये जाने की तलब बहुत होती है. आज भी सुबह जल्दी हो गयी. चाय की प्याली लिए जैसे ही बालकनी की खिड़की खोली जूही महारानी ने मुस्कुराते हुए ‘गुड मॉर्निंग’ बोला. पास खड़े हरसिंगार ने बस पलकें भर झपकायीं. इस बरस ऐसा है कि अक्टूबर का महीना जूही ने हरसिंगार से चुरा लिया है. हरसिंगार मध्धम सुर में खिल रहे हैं और जूही द्रुत गति से खिल रही है. जूही की मुस्कुराती हुई कलाई को हरसिंगार ने थाम रखा है.

ऐसी ही सुबह में एक नौजवान ने अपनी किस्सों की पोटली खोल ली है. वो कथा नीलगढ़ कहने बैठा है. और मैं उसके किस्सों में लगभग डूब चुकी हूँ. ये किस्से असल में सिर्फ भाषिक सौन्दर्य में लिपटी इबारत भर नहीं हैं ये किस्से हैं जिए हुए समय की हलचल. जैसे बीते समय की नब्ज थामे बैठी हूँ. सब कुछ सामने ही तो चल रहा है. मेरे आंगन की जूही और हरसिंगार नीलगढ़ के उन तमाम पेड़ों, पंछियों, रास्तों, नदियों, बादलों, बारिशों की बाबत सुनने को व्याकुल हैं. सबसे ज्यादा व्याकुल हैं वहां के लोगों के बारे में जानने को विकास के नक़्शे में जिनके अभाव, दर्ज नहीं.

अपने युवापन में समाज को बदलने का सपना होना कोई कमाल बात नहीं लेकिन उन सपनों की ड़ोर को पकड़कर निकल पड़ना एक ऐसे अनजाने सफर पर जहाँ न रहने का ठिकाना, न खाने का. न चमचमाते भविष्य का, करियर का कोई सपना ही. ऐसे ही नौजवान अनंत गंगोला के जीवन के किस्से हैं कथा नीलगढ़. किताब को पढ़ते हुए मालूम होता है कि हम पढ़ नहीं रहे बल्कि सुन रहे हैं वहीं उसी गाँव के चिकना पत्थर पर बैठकर. पास ही एक नदी की धुन कुछ गुनगुना रही है जिसमें नीलगढ़ और धुंधवानी गाँव के बच्चों की किल्लोल घुली हुई है.

दिल्ली के संभ्रांत परिवार में लाड़ प्यार से पला एक नौजवान अपने लिए देखे गए उज्ज्वल भविष्य और करियर के सपनों को पीछे छोड़ किस तरह देश के विकास के नक़्शे में बहुत पीछे छूटे एक गाँव में वहां के बच्चों के भविष्य वहां के गांवों के लोगों में भरोसे के सहेजने के लिए निकल पड़ता है यह जानना जरूरी है. चार दिन तक भूख से बेहाल रहने के बाद गुड़ की डली का जादू कैसा होता है यह है महसूस करना है इस किताब से गुजरना. जिनके घरों में दो वक्त चूल्हा जलने की सहूलियत नहीं उनकी आँखों में बच्चों की शिक्षा का सपना आकार ले रहा है यह देखना है इन किस्सों में. और इस गाँव के बच्चों को शिक्षित करने की बीड़ा उठाने की उस युवा की हौसले भरी यात्रा है इन किस्सों में.

मैं अभी इन किस्सों के मध्य में हूँ. यह किताब जिया गया जीवन है इसे उसी तरह पढ़े जाने की जरूरत भी है. सर्रर्र से पढ़कर किताब खत्म की जा सकती है जीवन की आंच को तो धीमे-धीमे महसूस करना होता है. सो कर रही हूँ. यह किताब इन दिनों हर वक़्त साथ रहने लगी है...इन किस्सों से गुजरते हुए ज़ेहन में छाए असमंजस के बादल छंट रहे हैं...


5 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25 -10-2021 ) को करवाचौथ सुहाग का, होता पावन पर्व (चर्चा अंक4226) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

    चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

    यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. बेहतरीन सृजन ❤️

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  3. आपने पुस्तक के बारे में लिखकर उसे पढ़ने की जिज्ञासा जगा दी है। हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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