Tuesday, October 19, 2021

सजदे में हूँ उधमसिंह के


यह फिल्म शुजित सरकार की नहीं है. यह फिल्म विकी कौशल की भी नहीं है. यह फिल्म है एक टुकड़ा इतिहास है. खून से लथपथ चीखते चिल्लाते इतिहास के उस पन्ने की जिस पर रखकर आज हम बर्गर पिज्जा खा रहे हैं. मेरी नसें तनी हुई हैं. आँखें गुस्से और दुःख से लाल हैं. मुझे नहीं लगता मैंने कोई फिल्म देखी है. असल में देखी भी नहीं. लगा कि जलियांवाला बाग़ के किसी कोने में खड़ी हूँ. मुझसे रोटी नहीं खाई गयी. सोया नहीं गया. रोया भी नहीं गया. ऐसी है उधमसिंह. फिल्म के एक दृश्य में जब अंग्रेजों की यातना (जिसे देखकर सिहरन होती है) को सहते हुए मुसुकुराते हुए उधमसिंह कहते हैं, 'अब दर्द नहीं होता' तो सिसकी बाहर आ जाती है. सच में दर्द के जैसे मंजर उधमसिंह ने देखे थे उसके क्या मौत का डर और क्या दर्द. लेकिन एक पल को भी प्यार से दूर नहीं हुआ यह नौजवान. दर्द के दरिया में डूबते हुए हर बार उसकी स्मृतियों में प्रेम ने उसे थाम लिया, मरहम सा प्रेम. अदालत में सत्य और निष्ठा की कसम खाने के लिए वो जिस किताब को चुनते हैं वो है 'हीर रांझा'. कैसी झुरझुरी होती है इस क्रन्तिकारी को देखते हुए. कौन होगा जो इश्क़ में लबरेज इस युवा के इश्क़ में न पड़ जायेगा?

इसे आप फोन पर बात करते हुए, किचन में सब्जी में कलछी घुमाते हुए, फेसबुक या वाट्सप पर निगाह रखते हुए मत देखिएगा. आप देख नहीं सकेंगे.

जब भी इतिहास के इन टुकड़ों के सामने जाकर खड़ी होती हूँ न जाने कितने सवाल मन में कौंधते हैं. यूँ वे सवाल रहते तो हमेशा ही हैं साथ. फिल्म में जो दिखाया गया, वो सच है. लेकिन फिर भी पूरा सच तो इस दिखाए गये से ज्यादा ही निर्मम रहा होगा. जिन दृश्यों को देखकर बेचैनी होती है वो दृश्य रचे नहीं गए जिए गए हैं, मरे गए हैं. उधमसिंह को देखते हुए हर पल सवाल उठते हैं कि हमने इतनी सारी कुर्बानियां देकर जो आज़ादी पाई है उसका हमने किया क्या.

बहुत मुश्किलों से हमने ये आज़ादी पायी है. बहुत दर्द सहा है लोगों ने इस आज़ादी के लिए, मौत को गले लगाया है. और हम क्या कर रहे हैं. क्रूर राजनीति के पहिये मासूमों को अब भी तो कुचल रहे हैं. धर्म के नाम पर एक-दूसरे से लड़ाकर तमाशा देखने वाली राजनीति, भोली, मासूम जनता को आईटी सेल में झोंककर तरक्की के नाम पर झूठे वादे. हत्या, बलात्कार, मॉब लिंचिंग, महंगाई, देश प्रेम के नाम पर नौजवानों को युध्ध में झोंकना यह है आज की आज़ादी. क्या इसी दिन के लिए क्रांतिकारियों ने जिन्दगी गंवाई थी. सवाल इत्ता सा है लेकिन इत्ता सा ही नहीं यह सवाल.

यह फिल्म मनोरंजन नहीं है लेकिन मेरी इल्तिजा है कि इतिहास के इस पन्ने के आगे एक बार सजदे में झुकना जरूरी है. खुद से पूछना जरूरी है कि इतनी जिंदगियों के मोल चुका कर जो आज़ादी मिली है कहीं हम उसका दुरूपयोग तो नहीं कर रहे...

सोचती हूँ विकी कौशल और शुजित सरकार इस फिल्म को करते हुए और करने के बाद कितनी रातों सो नहीं पाये होंगे. 
#उधमसिंह


2 comments:

  1. उधमसिंह को नमन

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