स्त्रियों के हिस्से रिसते हुए रिश्तों के जख्म जब आते हैं तब जीवन कैसा होता है यह समझना हो तो नेटफ्लिक्स पर MAID देखनी चाहिए. देखनी ही चाहिए. मैं अपने आस-पास न जाने कितनी ही ऐसी स्त्रियों को जानती हूँ जो कम्प्रोमाइज़िंग रिलेशन में हैं. हर दिन घुट रही हैं. बाथरूम में तेज नल खोलकर रो चुकने के बाद अच्छे से ड्रेसअप होकर पार्टी में जाती हैं. जिस रिश्ते की बजबजाहट से सिहर उठती हैं उसी रिश्ते की मुस्कुराती तस्वीरें साझा करती हैं. ढेर सारे बहाने या बहानों के भेष में (अनजाने भय) हैं जिसके चलते वे कहती हैं कि ऐसा होता तो वैसा करती.
लेकिन MAID देखते हुए लगता है कि एक स्त्री अपने आत्मसम्मान और अपने बच्चे की भावनात्मक सुरक्षा के लिए दुनिया की हर अभेद्य दीवार से टकरा सकती है. MAID की नायिका एलेक्स एक रोज अपनी 3 साल की बेटी MADDY को साथ लेकर अपने आत्मविश्वास के साथ निकल पड़ती है. कोई पूछे उससे कि हुआ क्या उसके साथ ऐसा जो घर छोड़ना पड़ा तो इसका कोई ठीक-ठीक जवाब भी नहीं उसके पास. हाँ, ऐसे सवालों से उसकी आँखें किसी स्याह उदासी के भंवर में डूबने लगतीं और उसे कुछ समझ में नहीं आता कि वो क्या कहे. दो वक्त का खाना नहीं उसके पास, छत नहीं. वो डीवी सेंटर यानी डोमेस्टिक वायलेंस सेंटर जाती है. उससे पूछा जाता है क्या तुम्हारी पिटाई की तुम्हारे पति ने? वो कहती नहीं. क्योंकि पिटाई तो नहीं हुई. लेकिन जो हुआ वो क्या पिटाई से कम था. वो जो रोज होता है धीमे-धीमे. फिर उस होने की गति बढ़ती जाती है. कि आपको घर में सम्मान नहीं मिलता. चीखना चिल्लाना, शुरू हो जाता है जब-तब. आप घर में अनवांछित सामान की तरह रखे होते हैं और जब-तब आप पर मालिक की तिरस्कार भरी नजर पड़ती रहती है. इस पर भी घर के उससे सारे काम करवाना और सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह इस्तेमाल किया जाना जारी रहता है. बच्चों पर भी इसका असर पड़ता है.
और फिर एक रोज बिना ज्यादा सोच-विचार किये अपने आत्मसम्मान की राह पर एलेक्स निकल ही पड़ती है. वो लोगों के घर में MAID का काम करती है और न जाने कैसे-कैसे अनुभवों से गुजरती है. हर मुश्किल से बड़ी मुश्किल उसके स्वागत के लिए हमेशा तैयार खड़ी होती है. एलेक्स जो पढ़ना चाहती थी, एलेक्स जिसकी आँखें सपनों से भरी थीं, एलेक्स जिसके भीतर एक लेखक था उसने लोगों के घरों के ट्वायलेट साफ़ करते हुए भी कभी सपने देखना बंद नहीं किया. हिम्मत नहीं हारी. एलेक्स की माँ पौला भी एक अब्यूजिव रिलेशन का शिकार रही है और अब एक खुली बिंदास ज़िंदगी जीने की कोशिश कर रही है. हालाँकि उसके भी अलग तरह के संघर्ष हैं.
एलेक्स के पिता जो अपनी दूसरी पत्नी और दो बच्चियों के साथ अलग रहते हैं पूरे वक्त एलेक्स की चिंता करते नजर आते हैं लेकिन असल में उनका चेहरा कुछ और ही है. किस तरह पितृसत्ता के कुचक्र सारे शोषकों को एक सूत्र में जोड़ लेते हैं यह दिखाती है सीरीज. शोषक पिता और शोषक पति किस तरह एक साथ हैं यह देखना विस्मय से तो नहीं दुःख से भरता जरूर है. सचमुच शोषण का दुःख का पीड़ा का चेहरा पूरी दुनिया में एक सा ही तो है. मैंने इस सीरिज को देखते हुए कई बार खुद को सिसकते हुए पाया. कभी-कभी लगता है ऐसा कुछ सिलेबस में क्यों नहीं होना चाहिए. लड़कियों को क्यों नहीं बताया जाना चाहिए कि तुम्हारे सपनों और तुम्हारे आत्मसम्मान से बड़ा कुछ नहीं. अब्यूसिव रिलेशन में रहना जिन्दगी से बढकर नहीं हो सकता. नायिका का आत्मविश्वास, उसका संघर्ष, उसकी जिजीविषा और सबसे ज्यादा उसकी अपने आपको लेकर स्पष्टता मोह लेती है. कोई आपकी मदद करता है तो आप उससे प्यार करने लगें ऐसा नहीं होता. मदद मदद होती है प्यार प्यार होता है. यह समझ होना जरूरी है. अब्यूसिव रिलेशन में रहते हुए जो हर पल का टॉर्चर झेलना होता है उससे निकलने की हिम्मत क्यों नहीं कर पाते. बच्चों के लिए रिश्ते में बने रहने का आग्रह करने वाला समाज शायद यह नहीं जानता कि ऐसे रिश्तों को सबसे ज्यादा बच्चे ही झेलते हैं.
हाँ, इस अमेरिकन सीरीज को देखते हुए वहां के शेल्टर होम, सरकारी योजनायें और उन योजनाओं से जुड़े संवेदनशील लोगों की बाबत भी पता चलता है. भारत में अगर कोई स्त्री घर छोडती है तो उसके पास कोई ठिकाना नहीं होता जहाँ उसे सुरक्षा और स्नेह एक साथ मिले. यह सीरिज स्त्रियों के आपसी रिश्तों की बाबत भी बात करती है. एक नौकरानी और मालकिन के बीच किस तरह प्रेमिल रिश्ते बन जाते हैं यह देखना सुखद है. किस तरह शेल्टर होम में सब स्त्रियाँ एक दूसरे को समझती हैं, साथ देती हैं यह भी किसी यूटोपिया सा लगता है. खासकर भारत के सन्दर्भ में. लेकिन ऐसे समय, सरकारी योजनाओं, संवेदनशील व्यवहार के बारे में सोचना, देखना अच्छा लगता है. एलेक्स पौला और मैडी के रिश्तों में जो एक धागा है वही इस सीरिज की मजबूत डोर है. इंसानी कमजोरियों, हताशाओं, सही-गलत निर्णयों, सपने देखने की जिजीविषा को बखूबी सम्भाला गया है सीरीज में. रिश्ते नहीं टूटने चाहिए यकीनन. लेकिन अगर रिश्तों में जिन्दगी टूटने लगे तो ज़िन्दगी बचायी जानी जरूरी है.
MAID@NETFLIX
(https://indiagroundreport.com/maid-review-netflix-homelessness-drama/)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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रिश्ते नहीं टूटने चाहिए यकीनन. लेकिन अगर रिश्तों में जिन्दगी टूटने लगे तो ज़िन्दगी बचायी जानी जरूरी है.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा बात कही आपने बहुत ही उम्दा समीक्षा!
आपकी समीक्षा पढ़कर यह सीरीज देखने के लिए मन बहुत ही उत्तेजित हो रहा है!
अब तो देखनी पडेगी ये सिरीज़ । सुंदर समीक्षा ।
ReplyDeleteसुंदर समीक्षा
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