बित्ते भर की थीं जूही महारानी जब स्कूटर पर आगे चढ़कर घर आई थीं बरस भर पहले. फिर अरमानों की बेल सी चढ़ती गयीं...कूद फांद करते हुए आगे बढ़ने की ऐसी चाह थी इन्हें कि इनके आस पास जो भी आया उसके काँधे पर सवार होती गयीं...अब यूँ है कि सुबह खिड़की खोलते ही खिलखिलाते हुए मिलती हैं. आसपास की धरती फूलों से भर उठी है. खुशबू हमेशा तारी रहती है...शरारत इतनी पसंद है इन्हें कि मेरे बालों में टंक जाने भर से जी नहीं भरता काँधे पर चढकर मेरे साथ घूमती फिरती हैं. कोई करीब से निकले और इनकी खुशबू से तर ब तर न हो उठे ऐसा कहाँ हो सकता है भला. न सिर्फ खुशबू ये तो पास आने वाले के काँधे पर टप्प से टपक जाने का सुख भी लेने में माहिर हैं. एक रोज मैंने देखा, शाम की सैर करने वाली सारी ही आंटियों के कंधे पर सवार थीं जूही महारानी. इतने चुपचाप कि उन्हें खुद भी खबर नहीं थी. बिलकुल प्रेम की तरह कि जैसे वो चुपचाप जीवन में आकर बैठ जाता है जीवन को महकाने लगता है और हमें खबर ही नहीं होती कि अचानक हुआ क्या...क्यों बदलने लगी दुनिया.
इन्हें आते हैं सब ढब अपने पास बुलाने के और हाथ थाम के अपने पास रोके रहने के...पास खिले गुलाब भी इनकी शरारतों पर मुग्ध रहते हैं.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.12.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह बहुत खूब।
ReplyDeleteशानदार अदायगी।