Wednesday, April 22, 2020

रोटी होती तो कोई बात थी- किशोर चौधरी

लिखना असल में अपनी पीड़ा से छुटकारा पाने के उपाय ढूंढना है. पढ़ना असल में ढूंढना है कुछ ऐसा लिखा हुआ जो हमारे भीतर उतरता जाए और हमारी बेचैनी को गले लगाकर रो ले. लिखने से दुनिया नहीं बदलती, लिखने से हम खुद कुछ बदल सकें काश.किशोर चौधरी को बरसों से पढ़ते आ रही हूँ. वो बहुत प्रिय लेखक हैं. कल से उनकी कुछ कवितायें लगातार साथ हैं. मैं इन कविताओं को बहुत बार पढ़ चुकी हूँ...सबको पढ़नी चाहिए.पाठ्यक्रम में पढ़ाई जानी चाहिए.- प्रतिभा 


सब पकवान लाइव थे
भूख पर अंधेरा छाया था।

* * *
पकवानों ने
खिड़की से झांक कर
सड़क पर चलती भूख को कोसा।

भूख ने ईश्वर से कहा
मरने से पहले घर पहुंचा देना।

* * *
तस्वीरें डालकर
अघाये हुए पकवान
इस सोच में गुम थे
कि नया क्या किया जाए।

भूख के पास दिखाने के लिए
ठीक ठीक एक शक्ल न थी।
* * *
पकवान झांक कर देख रहे थे
कि वे बीस की उम्र में कैसे थे।
भूख को झांकने की ज़रूरत न थी
वह तब भी ऐसी ही दिखती थी, 
जैसी अब है।
* * *
पकवानों ने 
एक दूजे को चैलेंज दिया।
भूख के मुँह से
एक शब्द भी न निकला।
* * *
जीवन को एक्सप्लोर करने को 
पकवान चित्र उकेरने,
नाचने, गाने और वीडियो बनाने लगे।
भूख अपने दोनों हाथों से
अंतड़ियों को चुप कराती रही।।
* * *
पकवानों ने कहा
कि घर से बाहर निकलते ही
किस के साथ दावत उड़ाएंगे।
भूख ने कहा
एक रोटी मिल जाये तो कितना अच्छा हो।
* * *
बड़ा पकवान
छोटे पकवान से मिलने आता है।
भूख कहीं नहीं जाती।
* * *
पकवान
कवि थे
लेखक थे
सम्पादक थे
चिंतक थे
कलाकार थे
मीडियाकर्मी थे
सलाहकार थे
युगदृष्टा थे।

भूख
बस भूख थी।
* * *
पकवानों ने कहा
ये कविताएं नहीं हैं।

भूख ने कहा
कविता हो तो भी इनका क्या करें।
रोटी होती तो कोई बात थी।
* * *

6 comments:

  1. सच बात है पेट को कविता से भी नहीं भरेगा न ही पकवान की फोटो से। अंदाज़ बेशक अलग है मगर बात वही की वही है। बाकी केसी की धार अलग ही है

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  2. यथार्थ ,मार्मिक और संवेदनाओं से सरोबार !

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 23 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  6. अद्भुत रचना 👌

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