दुनिया भर में जितने भी प्रताड़ित लोग हैं चाहे वो किसी भी धर्म के हों, उनके प्रेम में हूँ.
देश भर में जितने भी लोग आंदोलनों में किसी भी तरह से सक्रिय हैं, उनके प्रेम में हूँ
वो सब लोग जो अपने हकों के लिए आवाज उठा रहे हैं, अन्याय के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, उनके प्रेम में हूँ.
वो सब जो लाठियां खा रहे हैं, गालियाँ खा रहे हैं, जेलों में भेजे जा रहे हैं, उन सबके प्रेम में हूँ.
वो जो मेरे आसपास हैं, डरे हैं, सहमे हैं, चुप हैं, कुछ नहीं कहते, उनके प्रेम में हूँ.
वो जो गुस्से में बिफर ही पड़े हैं, हमसे नाराज हो बैठे हैं कि कैसे एक ही पल में उन्हें उनके ही देश में बेगाना कर दिया गया, उनके प्रेम में हूँ
वो रौशनी की नन्ही किरणें जो विशाल अँधेरे के आंगन में कूद जाने बेताब हैं, उनके प्रेम में हूँ.
कि प्रेम में होना ही है साथ होना..
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (23-12-2019) को "थोड़ी सी है जिन्दगी" (चर्चा अंक 3558 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (23-12-2019) को "थोड़ी सी है जिन्दगी" (चर्चा अंक 3558 ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं…
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रवीन्द्र सिंह यादव
ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना ....... ,.25 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।