Monday, February 27, 2017

पलाश से भरी धरती भी उदास हो सकती है



पलाश से भरी धरती भी उदास हो सकती है
तारों भरा आसमान भी हो सकता है गुमसुम

मुस्कुराहटों के मौसम के संग भी
आ सकती हैं निराश बारिशें
तमाम सभ्यताओं के बारे में जान लेने के बाद भी
बची रह सकती है असभ्यता
रास्ता मिलना 
जिंदगी में भटक जाने का भरम भी हो सकता है
हिदायतें हमारे जिए हुए डर हो सकते हैं
और क्रोध हमारी असमर्थता
दिल का टूटना 
पत्थरदिल दुनिया में दिल के बचे रहने की मुनादी भी हो सकती है
और दर्द का होना हो सकता है
जीवन में बची हुई आस्था का होना
प्रार्थनाएं खोई हुई उम्मीदों के लिए भटकना भी हो सकता है
और तुम्हारा न होना तुम्हारा होना भी हो सकता है.

(शाम की चाय के संग अगड़म बगड़म )

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 01 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. तमाम सभ्यताओं के बारे में जान लेने के बाद भी
    बची रह सकती है असभ्यता
    बहुत खूब ।
    वाह वाह....

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  3. एक अर्थपूर्ण रचना... आभार

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