Sunday, September 27, 2015

क्या लौट आया है मोहब्बत का मौसम...



मैं कौन हूँ. मेरे चेहरे से जो नाम जुड़ा है वो किसका है. मेरे गले में पड़ी नाम की तख्ती पे क्या दर्ज है आखिर। इन उँगलियों की पोरों से किसका नाम लिखती रहती हूँ बेसाख्ता. ये किसके नाम की पुकार पे चौंक जाती हूँ. ये किसकी सांस है जिसे मैं सहती हूँ. ये रास्ते किसने बिछाये हैं जिन पर बेतहाशा भागते जाना, भागते जाना है. ये गुमसुम से पड़े ख्वाब किसके हैं. इन आँखों में छुपी बदलियाँ कहाँ से आयीं आखिर इनको कौन सी धरती चाहिए बरसने को. ये जो शोर का समंदर है, शब्दों का ढेर इसके पीछे छुपा मौन इस कदर जख्मी क्यों है आखिर। इतने लोगों के बीच तन्हाई क्यों है आखिर। तन्हाई के सीने में ये सिसकियों का सैलाब कहाँ से आया. कौन छोड़ गया होगा अपने क़दमों की चाप जिसपे उग आई हैं उदासी की सदाबहार बेल. मौसम सर्द हो चला है, आसमान थोड़ा और करीब आ गया है, चौदस का चाँद खिड़की से झांकते हुए क्यों अनमना सा दीखता है आज. अपने दुपट्टे में खुद को लपेटते किसको ढूंढ रही हूँ आकाश में.

क्या फिर से लौट आया है मोहब्बत का मौसम कि खुलने लगे हैं कुछ मीठे से दर्द भी. सवाल तन्हा हैं बहुत, 

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