Saturday, September 19, 2015

रवीश के साथ होना है अपने साथ होना...



रवीश आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं, आपकी रिपोर्ट बहुत अच्छी होती है, रवीश आपकी बेबाकी को लेकर चिंता होती है आपकी, ऐसा कहने वाले हैं बहुत सारे लोग हैं लेकिन क्या होता है इससे। क्यों इस अच्छा लिखने वाले को सोशल मीडिया से हट जाना पड़ता है? क्यों लोकतंत्र के नाम पर फैलती जा रही अराजकता का मुंहतोड़ जवाब देने को एकजुट नहीं होते हम? रवीश ने अच्छा लिखने, खरा बोलने का ठेका अपने परिवार की सुरछा, अपने चैन की कीमत पर लिया है क्या? और हम? हमारी भूमिका क्या है आखिर? सिर्फ इतना कह देना कि आप अच्छा लिख रहे हैं से बात नहीं बनेगी। सोशल मीडिया हो या कोई और जगह मुंहतोड़ जवाब देना होगा। देना ही होगा।

पहले मेरी और रवीश जी की काफी लम्बी बातचीत हुआ करती थी. उनकी चिंताओं में तब भी यही हुआ करता था, अच्छा कह देना काफी नहीं अगर उसे सुनने, देखने, पढ़ने के बाद कुछ बदलाव ही न हो. रवीश प्रशंसाओं की दरकार नहीं रखते, अभिभूत नहीं होते लेकिन उनका सम्मान करते हैं. लेकिन वो चाहते हैं कि प्रशंसा हो या न हो बदलाव हो. आज भी उनकी चिंता यही है कि सही मुद्दे को जगह मिले उस पर बात हो। और देखिये सही मुद्दे की हिमायत करते-करते उन्हें कितना कुछ झेलना पड़ रहा है.

वो अपना काम ज़रुरत से ज्यादा ही ठीक ढंग से कर रहे हैं. अब हमें भी करना है अपना काम. सोशल मीडिया के अराजक तत्वों को मुंह तोड़ जवाब देना होगा। एक पत्रकार के तौर पर वो अपना कर रहे हैं, अब हमारी बारी है.… ये फासीवाद का जो नया रूप सोशल मीडिया पर अवतरित हुआ है इसका जवाब देना ही होगा वरना ये कहने का कोई अर्थ नहीं कि रवीश आप अच्छा काम कर रहे हैं. सवाल ये है कि हम क्या कर रहे हैं? 


1 comment:

  1. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

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