Wednesday, September 18, 2013

प्रतिरोध



मौन की जमीन पर
भी उग ही आते हैं प्रतिरोध के बीज

आसमान के पल्लू में बांधकर रखी गयी
तमाम खामोशियाँ
लेने लगती हैं आकार

धरती से आसमान तक
बरपा होने लगता है
चुप्पियों का शोर
अब नहीं, अब और नहीं

नहीं चलेगी अब कोई संतई
नहीं सेंकने देंगे सत्ता की रोटियां
हमारे जिस्मों की आंच पर

नहीं बहने देंगे एक भी बूँद खून
न सरहद पर, न सरहद पार

न, कोई सफाई नहीं देंगे हम

दुनिया के हाकिमों,
खोलो अपनी जेलों के दरवाजे
ठूंस दो दुनिया की तमाम हिम्मतों को
जेलों के भीतर
आम आदमी की चेतना का सीना
तुम्हारे आगे है.…

रंग कोई नहीं है हमारे झंडों का
बस कि रगों में दौड़ते खून का रंग है लाल.….

7 comments: