Friday, September 20, 2013

सब ठीक है....



सुबह जल्दी जागती हूं इन दिनों
रियाज़ के लिए चुनती हूं राग भैरवी

सैर में भैरवी की तान के संग
गुनती चलती हूं स्कूल जा रहे
बच्चों की मुस्कुराहटें

चाय के साथ बस थामे रहती हूं अखबार
फिर उठाकर रख देती हूं दूर

व्यवस्थित करती हूं घर
ढूंढती हूं कुछ खोई हुई चीजें

दवाइयां वक्त पर लेती हूं

ऑफिस में भी सब ठीक है
काम अपनी गति से चल रहा है

मुस्कुराहटों वाली चूनर में
कुछ छेद हो गये थे
पिछले दिनों उसे भी रफू करा लिया है

गाड़ी की सर्विसिंग ड्यू नहीं है

बच्चों की परीक्षाएं भली तरह निपट गयी हैं

बहुत दिन हुए किसी दोस्त से
नहीं हुई खट-पट

चैनलों को देखकर
जागता था गुस्सा
सो अब इंटरटेनमेंट चैनल में
मुंह घुसाये रहती हूं कुछ घंटे

पलटती हूं कुछ किताबें सोने से पहले
और खुद से बुदबुदाती हूं कि
सब ठीक है....
नमी से भरपूर ये शब्द
हर रात मुझे मुंह चिढ़ाते हैं...


6 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना

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  2. sundar rachna ... ek stri ki dincharya ko sundarta se pesh kiya aapne ek grihi ek maa ek patni ke roop me sabki khui me hi use sab thik lagta hai :) hubhkamnaye :)

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  3. आपकी इस रचना को सोमवारीय चर्चा(http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/) में शामिल किया गया है। आभार।

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  4. इतना सब होने पर भी ...ये मन चंचल है ..जो कभी कुछ समझता ही नहीं :)

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