Friday, August 9, 2013

रीत न जानूं प्रीत की...



रीत न जानूं प्रीत की
रीत गयी सब टूट…

लाख छुडाऊँ प्रीत पर
क्यों न रही ये छूट…

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मेरी दहलीज पे
छोड़ गए थे जो 'चुप'

वो बहुत 'शोर' करने लगी है
इन दिनों...


9 comments:

  1. चुप्पी का शोर ....सुंदर अभिव्यक्ति ...!!

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  2. वाह ......मेरा मौन थ पहले ही शोर करता था ...अब आपका भी ....

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  3. सुधरी, सहमी स्मृति बोले,
    रुक रुक बोले, पर बोले।

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  4. आपकी यह रचना आज शनिवार (10-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  5. मौन जब बोले...
    तो दुनिया डोले...सुन्दर अनुभुति !!

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  6. मेरी दहलीज पे
    छोड़ गए थे जो 'चुप'

    वो बहुत 'शोर' करने लगी है
    इन दिनों...

    ये चुप बहुत शोर करती है.....सच !
    बहुत सुंदर क्षणिकाएँ !

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  7. मेरी दहलीज पे
    छोड़ गए थे जो 'चुप'

    वो बहुत 'शोर' करने लगी है
    इन दिनों...

    सुंदर क्षणिकाओं के लिए बधाई !

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