समंदर तेरी आंखों में न सिमट आये तो कहना
मुस्कुरा के देख ले इक बार तू जिस तरफ
वो रास्ता कदमों में न बिछ जाए तो कहना
नाउम्मीदियों को चादर को एक बार झटक तो दे
उसमें से ही एक सूरज न निकल आये तो कहना
सदियों संभाला है तूने इस धरती को बेतरह
ये धरती तेरे कदमों में न बिछ जाये तो कहना
खूबसूरत हैं वो ख्वाब जिन्हें देखा नहीं तूने
वो ख्वाब हकीकत न बन जाये तो कहना
तू चल तो मेरी जान जरा दो कदम सही
फूल ही फूल न खिल जाये राहों में तो कहना
बहुत दिया है जमाने को तुमने, सचमुच बहुत
अब जमाना न लौटाये तेरा कर्ज तो कहना
बस सोच ले एक बार कि नहीं अब नहीं सहना
मिट जाये न अंधेरा तेरे मन का तो कहना...
वो ख्वाब हकीकत न बन जाये तो कहना
तू चल तो मेरी जान जरा दो कदम सही
फूल ही फूल न खिल जाये राहों में तो कहना
बहुत दिया है जमाने को तुमने, सचमुच बहुत
अब जमाना न लौटाये तेरा कर्ज तो कहना
बस सोच ले एक बार कि नहीं अब नहीं सहना
मिट जाये न अंधेरा तेरे मन का तो कहना...
सुंदर जज़्बा ......
ReplyDeleteशुभकामनायें ....!!
बस जब यह जीवटता मन से उभरती है, मन ऊर्जा से भर जाता है।
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मौन की जमीन पर
ReplyDeleteभी उग ही आते हैं प्रतिरोध के बीज....
........रंग कोई नहीं है हमारे झंडों का
बस कि रगों में दौड़ते खून का रंग है लाल.…सच है एक सीमा के बाद प्रतिरोध प्रतिशोध की और बढ़ चल पड़ता है बहुत सुन्दर प्रतिभाजी ,सुन्दर रचना हेतु विशेष आभार.