Wednesday, August 14, 2013

फिर भी बचा रहता है कुछ


टूटते हैं कांच के बर्तन,

फर्श पर फेंके जाते हैं
मोबाईल, कैमरे
घडी, रिमोट
शो पीस, महीन कारीगरी वाले बुध्ध

खींच के फेंक दिए जाते हैं
परदे , बेडशीट

फिर भी बचा रहता है कुछ
बचाने को

बचे रहते हैं बर्तन
मोबाईल, रिमोट
परदे, महंगी पेंटिंग

और सब कुछ

लेकिन बचाने को
नहीं बचता कुछ भी....


4 comments:

  1. गहरी..कहाँ जगत से मोह लगाया।

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  2. अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
    आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 16-08-2013 के .....बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!

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  3. अतिसुन्दर ,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

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