टूटते हैं कांच के बर्तन,
फर्श पर फेंके जाते हैं
मोबाईल, कैमरे
घडी, रिमोट
शो पीस, महीन कारीगरी वाले बुध्ध
खींच के फेंक दिए जाते हैं
परदे , बेडशीट
फिर भी बचा रहता है कुछ
बचाने को
बचे रहते हैं बर्तन
मोबाईल, रिमोट
परदे, महंगी पेंटिंग
और सब कुछ
लेकिन बचाने को
नहीं बचता कुछ भी....
गहरी..कहाँ जगत से मोह लगाया।
ReplyDeleteअत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
ReplyDeleteआपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 16-08-2013 के .....बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
अतिसुन्दर ,स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteअच्छी रचना