प्यार के आँगन में गिरा था जो पहला ख़त
वो तुम्हारा था
वो तुम्हारा था
ज़ेहन के दरीचों में ज़ज्ब हुई थी जो आवाज
वो तुम्हारी थी
वो तुम्हारी थी
सिरहाने झरती थीं जो शबनमी रातें
वो सौगात तुम्हारी थी
वो सौगात तुम्हारी थी
चाँद से दिल लगाना
हवाओं को पहनना कानों में
बांधना ख्वाबों की पाजेब,
उड़ते फिरना आसमान के आखिरी छोर तक
सब सिखाया तुमने
हवाओं को पहनना कानों में
बांधना ख्वाबों की पाजेब,
उड़ते फिरना आसमान के आखिरी छोर तक
सब सिखाया तुमने
गुलज़ार कहते हैं लोग तुमको
कि तुमसे ही होती है गुलज़ार जिंदगियां
जन्मदिन मुबारक हो गुलज़ार साब!
कि तुमसे ही होती है गुलज़ार जिंदगियां
जन्मदिन मुबारक हो गुलज़ार साब!
बड़ी प्यारी सी नज़्म है...सच है, एक पूरी पीढ़ी ने कुछ अहसासों को गुलज़ार की नज्मों में डूबकर ही पहचाना है .
ReplyDelete@उड़ते फिरना आसमान के आखिरी छोर तक
ReplyDeleteसब सिखाया तुमने
गुलज़ार कहते हैं लोग तुमको
बेहतरीन नज़्म...
वाक़ई गुलजार साहेब ने एक पूरा का पूरा युग ही गुलज़ार कर दिया.
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteगुलज़ार अपने आप में एक अलग दुनिया हैं... :)
ReplyDeleteजन्मदिन की शुभकामनायें..
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