Thursday, March 28, 2013

अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते


ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हम ही दिल को संभलने नहीं देते

आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते

गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माअ़ने
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते.

- अकबर इलाहाबादी 

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
    सूचनार्थ...सादर!
    --
    होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
    इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  2. बहुत ही बेहतरीन गज़ल की प्रस्तुति.

    ReplyDelete
  3. आँखें मुझे तलवों से वो मलने नहीं देते
    अरमान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

    ReplyDelete
  4. परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
    क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते
    Khoobsurat shero ke sath khoobsurat gazal

    ReplyDelete