तुम्हें जल्दी थी जाने की
हमेशा की तरह
वैसी ही जैसे आने के वक्त थी
बिना कोई दस्तक दिए
किसी की इजाजत का इंतजार किये
बस मुंह उठाये चले आये
धड़धड़ाते हुए
चंद सिगरेटों का धुंआ कमरे में फेंका
मौसम के गुच्छे
उठाकर टेबल पर रख दिए
थोड़ा सा मौन लटका दिया उस नन्ही सी कील पर
जिस पर पहले कैलेंडर हुआ करता था
फिर एक दिन उठे और
बिना कुछ कहे ही चले गये
जैसे कुछ भूला हुआ काम याद आ गया हो
किसी की इजाजत का इंतजार किये
बस मुंह उठाये चले आये
धड़धड़ाते हुए
चंद सिगरेटों का धुंआ कमरे में फेंका
मौसम के गुच्छे
उठाकर टेबल पर रख दिए
थोड़ा सा मौन लटका दिया उस नन्ही सी कील पर
जिस पर पहले कैलेंडर हुआ करता था
फिर एक दिन उठे और
बिना कुछ कहे ही चले गये
जैसे कुछ भूला हुआ काम याद आ गया हो
न..., कोई वापसी का वादा नहीं छोड़ा तुमने
लेकिन बहुत कुछ भूल गये तुम जाते वक्त
तुम भूल गये ले जाना अपना हैट
जिसे तुम अक्सर हाथ में पकड़ते थे
लाइटर जिसे तुम यहां-वहां रखकर
ढूंढते फिरते थे
लैपटाप का चार्जर,
अधखुली वार एंड पीस,
तुम भूल गये दोस्तोवस्की के अधूरे किस्से
खिड़की के बाहर झांकते हुए
गहरी लंबी छोड़ी हुई सांस
तुम समेटना भूल गये
अपनी खुशबू
अपना अहसास जिसे घर के हर कोने में बिखरा दिया था तुमने
टेबल पर तुम्हारा अधलिखा नोट
तुम ले जाना भूल गये अपनी कलाई घड़ी
जिसकी सुइयों में एक लम्हा भी मेरे नाम का दर्ज नहीं
लेकिन बहुत कुछ भूल गये तुम जाते वक्त
तुम भूल गये ले जाना अपना हैट
जिसे तुम अक्सर हाथ में पकड़ते थे
लाइटर जिसे तुम यहां-वहां रखकर
ढूंढते फिरते थे
लैपटाप का चार्जर,
अधखुली वार एंड पीस,
तुम भूल गये दोस्तोवस्की के अधूरे किस्से
खिड़की के बाहर झांकते हुए
गहरी लंबी छोड़ी हुई सांस
तुम समेटना भूल गये
अपनी खुशबू
अपना अहसास जिसे घर के हर कोने में बिखरा दिया था तुमने
टेबल पर तुम्हारा अधलिखा नोट
तुम ले जाना भूल गये अपनी कलाई घड़ी
जिसकी सुइयों में एक लम्हा भी मेरे नाम का दर्ज नहीं
आज सफाई करते हुए पाया मैंने कि
तुम तो अपना होना भी यहीं भूल गये हो
अपना दिल भी
अपनी जुंबिश भी
अपना शोर भी, अपनी तन्हाई भी
अपनी नाराजगी भी, अपना प्रेम भी
सचमुच बेसलीका ही रहे तुम
न ठीक से आना ही आया तुम्हें
न जाना ही...
तुम तो अपना होना भी यहीं भूल गये हो
अपना दिल भी
अपनी जुंबिश भी
अपना शोर भी, अपनी तन्हाई भी
अपनी नाराजगी भी, अपना प्रेम भी
सचमुच बेसलीका ही रहे तुम
न ठीक से आना ही आया तुम्हें
न जाना ही...
बहुत ख़ूब, बेसलीका और बेफ़िक्री में जीने का आनन्द
ReplyDeleteसम्बन्धों के अधूरेपन का अद्भुत प्रकटीकरण।
ReplyDeleteतुम समेटना भूल गये
ReplyDeleteअपनी खुशबू
अपना अहसास जिसे घर के हर कोने में बिखरा दिया था तुमने
सुंदर अभिव्यक्ति .....
वाह ... बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबेहतरीन...
:-)
कितना सजीव चित्रण
ReplyDeleteसमेटे बिना चले जाने का दर्द पीछे वाले के लिए और भी दुःखदाई पल इस जिंदगी के
ReplyDeletebeautiful....besalika
ReplyDelete♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥
तुम तो अपना होना भी यहीं भूल गये हो
अपना दिल भी
अपनी जुंबिश भी
अपना शोर भी, अपनी तन्हाई भी
अपनी नाराजगी भी, अपना प्रेम भी
सचमुच बेसलीका ही रहे तुम
न ठीक से आना ही आया तुम्हें
न जाना ही...
अप्रतिम ! अद्वितीय ! अद्भुत !
आदरणीया प्रतिभा जी
आपकी रचनाओं के लिए कोई क्या कहे …
हर रचना सुंदर रचना !
हर कविता में आपकी अलग छाप साफ़ नज़र आती है ...
शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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मेरे लौटने से भी,
ReplyDeleteक्या होगा?
न लोग मुझे पहचानेँगे,
न तुम
मेरे चलते ही
निकाल दिया था
तुमने घर से बाहर,
याद है उस रात कि बारिश,
मैँ बीमार था,
कि;
अचानक और बीमार हुआ,
तुमने नाड़ी देखा,
और
निकाल दिया,
मुझे मेरे ही घर से,
उस घर से,
जिसे सजाने मे मैँने
पूरी जिँदगी बिता दी.
जिसकी एक एक ईँट,
मेरे मेहनत से था,
सब खत्म कर दिया,
तुमने मेरे मरते ही
मुझे जला दिया
ये जानते हुए भी कि,
मैँ आग से डरता था ...
मेरे लौटने से भी,
ReplyDeleteक्या होगा?
न लोग मुझे पहचानेँगे,
न तुम
मेरे चलते ही
निकाल दिया था
तुमने घर से बाहर,
याद है उस रात कि बारिश,
मैँ बीमार था,
कि;
अचानक और बीमार हुआ,
तुमने नाड़ी देखा,
और
निकाल दिया,
मुझे मेरे ही घर से,
उस घर से,
जिसे सजाने मे मैँने
पूरी जिँदगी बिता दी.
जिसकी एक एक ईँट,
मेरे मेहनत से था,
सब खत्म कर दिया,
तुमने मेरे मरते ही
मुझे जला दिया
ये जानते हुए भी कि,
मैँ आग से डरता था ...
hone aur na hone ke beech ke khalee pan kee sunder abhivyakti.
ReplyDelete
ReplyDeleteमौसम के गुच्छे
उठाकर टेबल पर रख दिए
थोड़ा सा मौन लटका दिया उस नन्ही सी कील पर
जिस पर पहले कैलेंडर हुआ करता था
gazab kee gahrayee !