Wednesday, June 22, 2011

अब लिखूंगी तुम्हे हर बात माय लव...


(कल २१ जून को ज्यां पाल सात्र का जन्मदिन था. सारा दिन नीम हरारत में करवटें बदलते हुए सात्र और सिमोन के बारे में सोचती रही. कहते हैं ज्यादा सोचो तो फिर कुछ कहने सुनने को बचता ही नहीं. न लिखा जाता है कुछ. तो उसी नीम हरारत में सात्र के जन्मदिन पर सिमोन का यह पत्र  पढ़ती रही बार-बार - प्रतिभा )


डियर लव,
आखिरकार तुम्हारा एक पत्र तो आया, जिससे मुझे पता चला कि तुम्हें मेरे पत्र मिलते रहे हैं! (उन दिनों सात्र एक युद्धबंदी के रूप में जर्मनों की कैद में थे) मुझे कितना पछतावा हो रहा है, माय स्वीट लिटल वन, कि मैंने रोजाना तुम्हें एक पत्र क्यों नहीं लिखा! मैं बहुत ज्यादा दुखी थी. लेकिन, अब मैं जरूर लिखा करूंगी. इससे मेरी पूरी जिंदगी बदल गई है. पुराने दिनों की तरह, तुम फिर से मेरे साथ घटी हर बात जान सकोगे. 

मुझे बहुत डर लग रहा है, माय लिटल वन कि कहीं तुम वहां बहुत दुखी तो नहीं हो? मैं जानती हूं कि तुम चट्टान की तरह मजबूत हो लेकिन तुम एक 'संवेदनशील आत्मा भी हो और तुम्हारे दिल को हुआ जरा सा भी दर्द का एहसास मेरे दिल को बहुत ज्यादा  कचोट जाता है. निस्संदेह, मैं यहां कर्तव्य की भावना से नहीं ऊब रही हूं, डियर लिटल वन. उलटे मुझे दुखी रहने से नफरत है और जून से ही मैं इस दुख से मुक्त होने की कोशिशों में लगी रही हूं, अमूमन काफी सफलता के साथ. मेरी जिन्दगी  भरी हुई है. लोगों से, काम से, संगीत से, लेकिन कई बार तुम्हें देखने की इच्छा इतनी ज्यादा कचोटने लगती है कि मैं न चाहकर भी दुखी हो जाती हूं. सच्चाई यह है कि मैं तुमसे प्यार करती हूं माय लिटल वन. तुमसे और किसी भी चीज से नहीं. तुम्हारे उस भोले चेहरे से, जिसे मैंने कई दिनों से नहीं देखा, तुम्हारे नन्हे व्यक्तित्व से, तुम्हारी विनम्रता से और हम दोनों की साझी खुशी से.
आमतौर पर मैं अपने आपसे यही कहती हूं कि कुछ भी खोया नहीं है और प्रतीक्षा में जीती रहती हूं, लेकिन कभी-कभी इंसान इस प्रतीक्षा से बहुत थक जाता है. कुछ मुक्ति चाहिए होती है और वह मुक्ति मुझे तुम ही दे सकते हो, लेकिन जैसा कि तुम कहते हो, मैं तुम्हें जल्दी ही वापस पा लूंगी, हमेशा-हमेशा के लिए और फिर हमारे सामने एक पूरी जिंदगी होगी. पर अब तुम मेरे लिए बिल्कुल चिंता नहीं करना. खासकर तुम्हारा यह पत्र मिल जाने के बाद मैं दिमागी तौर पर काफी सुकून महसूस कर रही हूं. मेरी जिंदगी बिल्कुल पिछले साल की तरह चल रही है. दुखों की बजाय, खुशियों के ज्यादा नजदीक, एक तरह से एक निलंबित खुशी की तरह. कल से मैं हर रोज तुम्हें यहां की जिन्दगी के बारे में बताऊंगी. 

मैं इन दिनों कुछ खास नहीं पढ़ पा रही हूं. फिर भी कांट को मैंने काफी गहराई से पढ़ा है और इधर संगीत में भी मैं कुछ रुचि ले रही हूं. मैं अपने उपन्यास से बहुत खुश हूं. यह तीन महीनों में पूरा हो जाएगा. सिर्फ तुम्हारी टिप्पणियों का अभाव बहुत खल रहा है. माय लव, कितनी खुशी होती है मुझे तुम्हें पत्र लिखकर! कुल मिलाकर मेरी जिन्दगी काफी खुशगवार गुजर रही है, काश तुम्हारे बारे में भी मैं यही बात कह पाऊं! माय लिटल वन, बहुत प्रेम करती हूं मैं तुमसे, और तुम्हें अपने अस्तित्व से अलग नहीं पाती! मुझे हमेशा अपने करीब रखना.
तुम्हारी चार्मिंग बीवर

(यह पत्र सिमोन डी बोउवा ने सात्र को  १४ दिसम्बर १९४० पेरिस से लिखा था)


- आहा जिंदगी के जून अंक से साभार


 

12 comments:

  1. बड़ी खुशी हुई आप का ये अनमोल खत पढ़ कर....कितना अजीब लगता है जब हम किसी की जिन्दगी के वो हीरे लगे हुए अलफाजें को पढ़ते है.....कितना अलग अहसास है इन ख़तों का.........शुक्रिया की आपने इनसे रूबरू करवाया...........

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  2. इस अमूल्य पुरानी धरोहर के अल्फाज बहुत सुन्दर लगे ..आपका अनुवाद भी उत्कृष्ट

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  3. जी इस खत के बारे में सुना था, लेकिन पढा नहीं था। वाकई बहुत अच्छा लगा। खासतौर पर इसलिए मै चाहता था कि इसे पढूंगा, और ये इच्छा पूरी हुई।

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  4. @ Dr Nutan- नूतन जी, चुनाव मेरा है लेकिन अनुवाद मेरा नहीं है.

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  5. क्या कथादेश में या कही ओर प्रकाशित हुआ है ?

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  6. मेरी जिन्दगी भरी हुई है. लोगों से, काम से, संगीत से, लेकिन कई बार तुम्हें देखने की इच्छा इतनी ज्यादा कचोटने लगती है कि मैं न चाहकर भी दुखी हो जाती हूं. सच्चाई यह है कि मैं तुमसे प्यार करती हूं माय लिटल वन.....shukriya pratibhaji yah khat sajha karne ke liye.

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  7. @ डॉक्टर अनुराग- ये पत्र अहा जिंदगी के जून अंक में प्रकाशित हुआ है.
    @ सागर- दुष्ट बालक, तुम यहां?

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  8. ओह्ह ओह्ह बहुत ही बढिया

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