किस दर्द के बेल और बूटे हैं
जो दिल की रगों में फूटे हैं
कोई झूठ ही आकर कह दे रे
ये दर्द मेरे सब झूठे हैं
चैन परिंदा घर आये दुआ करो
दर्द परिंदा उड़ जाये दुआ करो.
मेरी तड़प मिटे हर रोग कटे
इस जिस्म से लिपटा इश्क हटे
तुम साफ़ हवा सी मिला करो
चैन परिंदा घर आये दुआ करो…
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आँखों के आंसू सब देखें
कोई रूह की दरारें देखे न
मेरी ख़ामोशी के लब सी दो
ये बोले न ये चीखे न
मेरी सोच के पंख क़तर डालो
मेरे होने पे इलज़ाम धरो
मेरे गीत सभी के काम आये
कोई मेरा भी ये काम करो
न हवस रहे न बहस रहे
कोई टीस रहे न कसक रहे
तुम मुझको मुझसे जुदा करो
चैन परिंदा घर आये दुआ करो…
मैं एक ख़बर अखबार की हूँ
मुझे बिना पढ़े ही रहने दो
कागज़ के टुकड़े कर डालो
और गुमनामी में बहने दो
तुम मुझको ख़ुदपे फ़ना करो
चैन परिंदा घर आये दुआ करो
अश्कों की खेती सूखे अब
ज़ख्मों से रिश्ता टूटे अब
दिल तरसे न दिल रोये न
कोई सड़क पे भूखा सोये न
कोई बिके न कोई बेचे न
कोई खुदगर्ज़ी की सोचे न
कोई बंधे न रीत रिवाजों में
दम घुटे न तल्ख़ समाजों में
मैं सारे जहाँ का फिकर करूँ
फिर अपना भी मैं ज़िकर करूँ
मैं तपती रेत मरुस्थल की
इक सर्द शाम तुम अता करो
चैन परिंदा घर आये दुआ करो
- इरशाद कामिल
मेरी तड़प मिटे हर रोग कटे
ReplyDeleteइस जिस्म से लिपटा इश्क हटे
बार बार इस लाइन तक आकर रुक जा रही हूँ ...और फिर लौट जा रही हूँ ऊपर पहली लाइन से फिर यहाँ तक.... ! उफ्फ़ प्रतिभा ..अभी आगे पढ़ पाने की की गुंजाइश ही नहीं दिखती...यहीं काम तमाम हो गया है मेरा ...दुआ करो कि इसे पूरा पढ़ सकें ..दुआ करो कि आखिर तक पढ़ के ज़िंदा तो बचें !
खूबसूरत शब्दों मे सिमटी एक उम्दा रचना |
ReplyDelete@ Babbusha- यार जब काम तमाम हो ही गया है तो अब क्या कहें...वो कहते हैं न कि मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का...हम सब मरने के ही तो मुन्तजिर हैं न? इरशाद साहब का शुक्रिया!
ReplyDeleteअश्कों की खेती सूखे अब
ReplyDeleteज़ख्मों से रिश्ता टूटे अब
दिल तरसे न दिल रोये न
कोई सड़क पे भूखा सोये न.
बहुत सुंदर... क्या बात है
कुछ पंक्तियाँ जो बहुत खूबसूरत लगीं ..........
ReplyDeleteमेरी तड़प मिटे हर रोग कटे
इस जिस्म से लिपटा इश्क हटे
आँखों के आंसू सब देखें
कोई रूह की दरारें देखे न
मेरी ख़ामोशी के लब सी दो
ये बोले न ये चीखे न
मेरी सोच के पंख क़तर डालो
मेरे होने पे इलज़ाम धरो....इस सुन्दर रचना को शेअर करने के लिए शुक्रिया........प्रतिभा
प्रेम बोझ सा झूल रहा हो,
ReplyDeleteटूट हृदय स्थूल रहा हो,
नहीं कहे तो क्या कर डालें,
तभी कहेगा, सतत सहा हो।
woowww behad kamaal ....sunder bahar me ek khoobsoorat geet padhkar accha laga :)
ReplyDeleteसंवेदनशील भावपूर्ण सृजन ... /
ReplyDeleteशुक्रिया जी /
इरशाद कामिल जी की बेहतरीन रचना पढवाने का शुक्रिया
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