Tuesday, June 14, 2011

चक्रव्यूह

तुम बुन रहे थे चक्रव्यूह,
मैं खुश थी कि
उस दौरान
मेरा ख्याल था तुम्हारे आसपास.


तुम रच रहे थे साजिशें
मैं खुश थी कि
ध्यान मेरी ही तरफ था तुम्हारा
उस सारे वक्त में.


तुम लगा रहे थे आरोप
मैं खुश थी कि
कितनी शिद्दत से
सोचा होगा तुमने मेरे बारे में
जब तय किये होंगे आरोप.

तुम इकट्ठे कर रहे थे पत्थर
मैं खुश थी कि
इसी बहाने
इकट्ठी कर तो रहे थे अपनी ताकत.

और इतनी देर
दुनिया के कारोबार में
नहीं डाला खलल तुमने...

20 comments:

  1. और इतनी देर
    दुनिया के कारोबार में
    नहीं डाला खलल तुमने..awsome

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  2. bhavnaao me doobi hui ek kavita. jaise ki mujhe pasand hai :)

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  3. क्या बात है प्रतिभा जी । स्त्रियां होती हैं ऐसी । हम ज्यादा दूर क्यों जाएं। अपने घर-परिवार में ही देख लें । घर में किसी भी अच्छाई के लिए हम स्वयं को जिम्मेदार ठहरा देते हैं लेकिन यदि कुछ गलत हो जाए तो उसके लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहरा देते हैं । महिलाओं के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण भी किसी से छिपा नहीं है । लेकिन इस सब के बावजूद भी महिलाएं निष्ठा के साथ अपने काम में लगी हुई है ।

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  4. बहुत अच्छा लिखा है ....कितनी शिद्दत से
    सोचा होगा तुमने मेरे बारे में........वाह क्या बात है.......प्यार हो तो ऐसा हो.........

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  5. तुम लगा रहे थे आरोप
    मैं खुश थी कि
    कितनी शिद्दत से
    सोचा होगा तुमने मेरे बारे में
    जब तय किये होंगे आरोप.

    aaj to waise hi main jaan hatheli pe le ke baithi hun..tum aur rahi sahi qasar nikaal lo ! Kyun na marr hi jaaun aaj pratibha ! :-)
    Loved it gal !

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  6. वाकई...जो किया सब मेरे लिए...

    बहुत सुन्दर रचना...बधाई.

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  7. stabdh hun...adbhut kavita hai.... aurat se ishwar tak jaati hui lag rahi hai...

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  8. तुम इकट्ठे कर रहे थे पत्थर
    मैं खुश थी कि
    इसी बहाने
    इकट्ठी कर तो रहे थे अपनी ताकत

    बहुत सुंदर भाव। अच्छी कविता

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  9. तुम इकट्ठे कर रहे थे पत्थर
    मैं खुश थी कि
    इसी बहाने
    इकट्ठी कर तो रहे थे अपनी ताकत

    बहुत सुंदर भाव। अच्छी कविता

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  10. दुनिया थोड़ी और सँवर गयी, मेरी कीमत पर।

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  11. सुन्दर रचना, बधाई|

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  12. तुम लगा रहे थे आरोप
    मैं खुश थी कि
    कितनी शिद्दत से
    सोचा होगा तुमने मेरे बारे में
    जब तय किये होंगे आरोप.
    khoobsurat panktiya..............

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  13. कितना व्यापक सत्य उगला है जिन्हें हर स्त्री जूझ रही है....

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  14. कल की बात और है मैं रहूँ ना रहूँ..
    जितना ज़ी चाहे आज सता ले मुझको...

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  15. मैं खुश थी कि
    इसी बहाने
    इकट्ठी कर तो रहे थे अपनी ताकत...

    अंतर्द्वंद का अनोखा विश्लेषण
    और
    अनूठी शैली
    प्रभावशाली रचना .

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  16. "और इतनी देर
    दुनिया के कारोबार में
    नहीं डाला खलल तुमने"

    ये सबसे अच्छी बात हुई..

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  17. @ Parul- Yahi to sari baat hai parul!

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