'बहुत घुटी घुटी रहती हो
बस खुलती नहीं हो तुम'
खुलने के लिए जानते हो
बहुत से साल पीछे जाना होगा
जहाँ से कंधे पर बस्ता उठाकर
स्कूल जाना शुरू किया था
इस जेहन को बदलकर
कोई नया जेहन लगवाना होगा
और इस सबके बाद जिस रोज
खुलकर
खिलखिलाकर
ठहाका लगाकर
किसी बात पे जब हसूंगी
तब पहचानोगे क्या..?
- दीप्ति नवल
badhiya... loved it.
ReplyDeleteइस सबके बाद जिस रोज खुलकरखिलखिलाकर ठहाका लगाकर किसी बात पे जब हसूंगीतब पहचानोगे क्या..?-bahut jahin swaal dipti naval ji ki rachnayen bahut achhi lagti hain
ReplyDeleteकितनी वर्फ गिर गयी है हमारे उत्साह में।
ReplyDeleteखुलने के लिए जानते हो बहुत से साल पीछे जाना होगा जहाँ से कंधे पर बस्ता उठाकर स्कुल जाना शुरू किया था
ReplyDeleteबेहद संजीदा रचना प्रतिभा जी
maine to taange huye hain baste kandhon pe ab bhi jaaneman ! pata to hai tumhein..! maza aata hai.. ! aao tum bhi taang lo ! :-)
ReplyDelete@ Babusha- Janti hoon sab. aa rahi hoon main bhi jara basta sambhal loon...kafi bhari hai yaar!
ReplyDeleteबहुत ही खुबसुरत रचना, धन्यवाद
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