Friday, May 20, 2011

डोंट फॉलो द रूल्स...


मैं अक्सर अपने छात्रों से कहती हूं कि 'डोंट फॉलो द रूल्स.' जब मैं ऐसा कह रही होती हूं तो मेरे मन में यह कामना होती है कि वे अब तक के पढ़ाये, सिखाये, बताये गये से आगे जाकर कुछ नया वितान रचें. कक्षाओं की सारी दीवारों को तोड़कर किताबों को हवाओं में उछालकर, ढेर सारे सवालों के हाथ थामे दुनिया की सैर को निकल पड़ें. 


इन दिनों छोटे बच्चों से रू-ब-रू हूं. गर्मी की छुट्टियां हैं. अब शहरी बच्चे गर्मी की छुट्टियां समर कैम्प में बिताते हैं. बेरियों के बेर तोड़ते, बागों में आम चुराते, दिन भर बुर्जुर्गों की डांट खाने के बाद भी घपड़चौथ करने का सुख बच्चों के हाथ से फिसलकर दूर जा चुका है. उनके हाथ में रिमोट आ गये हैं, कार्टून नेटवर्क, वीडियोगेम्स. बहुत हुआ तो कुछ समर कैम्प की एक्टिविटीज. ऐसे में मेरे कुछ साथियों ने एक कोना खोजा और गली के 
बच्चों के मुरझाये चेहरों पर मुस्कान सजाने की कोशिश शुरू की. बिना कोई रुपया पैसा लिये बच्चों को इकट्ठा किया और उन्हें संगीत की शिक्षा देने का काम शुरू हुआ. इनमें से कुछ अब विधिवत संगीत की शिक्षा हासिल कर रहे हैं.


फिलहाल इन दिनों इस कोने में खूब धमाल मचा है. बच्चे शाम को जमा होते हैं, म्यूजिक प्लेयर पर गाने शुरू होते हैं, सबका मटकना शुरू हो जाता है. सिखाने की कोशिश करने वाली मेरी दोस्त का फोन आया, 'यार ये बच्चे मुझसे संभलते ही नहीं. तुम आओ.' मैं हंसती हूं. वक्त की कमी के चलते जाना टलता ही जाता है. बच्चों का मटकना जारी है. दोस्त का परेशान होना भी. आखिर एक टुकड़ा फुरसत लेकर पहुंच जाती हूं. बच्चे घेरकर मुझसे चिपक जाते हैं. उनकी आंखों में प्यार भी है और शिकायत भी. 'कितनी मुद्दत बाद मिले हो' का उलाहना भी. हम साथ में चाय पीते हैं, गप्पें मारते हैं. गर्म हवा भी गर्म नहीं लगती. दोस्त अब भी यही सोच रही है कि असली चैलेंज तो अभी आना है. 
मैं पूछती हूं, 'कौन सा गाना?' 
सब चिल्लाते हैं...'चार बज गये, पार्टी अभी बाकी है.'
मैं हंसती हूं. गाना प्ले करती हूं. सब बंदरों की तरह कूदते हैं, उछलते हैं. कोई स्टेप नहीं, कोई नियम नहीं, कोई कायदा नहीं. बस एक मूड है मस्ती का. सब दिल से नाच रहे हैं. उन्हें देखकर याद आता है संगीत के गुरू का कहा कि 'संगीत की किसी भी विधा में उतरने का पहला नियम है कि उसे अपने दिल में उतरने दो.' उन बच्चों की आंखों में उस वक्त कुछ भी नहीं था. बस गाने के बोल और मस्ती. दोस्त मेरी ओर देखती है. 
मैं हंसती हूं...ठीक तो है. 
वो म्यूजिक टीचर है. उसे ये बंदरों की तरह कूदना ठीक कैसे लग सकता है. 
मैं उससे कहती हूं आओ हम भी इनके साथ कूदते हैं. भूल जाओ कि तुम म्यूजिक टीचर हो. आओ हम इन्हें फॉलो करें. हम करते हैं...चार कबके बज चुके थे. टेढ़े मुंह वाला चांद हमें देख हंस रहा था. हम थक चुके थे. बच्चे खुश थे. 

हम थककर बैठते हैं. दोस्त की चिंता है, मस्ती तो ठीक है लेकिन ऐसे डांस पे इन्हें इंट्री कहां मिलेगी. मैं उसे शान्त रहने को कहती हूं. बच्चे हमें फिर घेर लेते हैं.
'मजा आया?' मैं पूछती हूँ 
'हां,'  वे एक सुर में चिल्लाते हैं.
'कल कौन सा गाना...?'  एक के बाद एक गानों की लिस्ट बाहर निकलती है. 

'रेन डांस कैसा आइडिया है?'
इस चिलचिलाती गर्मी में इस आइडिया को कौन कम्बख्त खारिज करेगा?
'बढिय़ा.' बच्चों की आंखों में चमक आती है.
'तो फिर चक धूम..धूम..?'
मैं पूछती हूं.
'ठीक है.'

' दो-तीन दिन पहले उन्हें उनके मन से खूब कूद लेने दो. उनके भीतर जो है, उसे निकल जाने दो फिर अपना उनके भीतर बोओ...' दोस्त से कहती हूं. वो समझ जाती है.

बच्चे अब सुर में हैं...दोस्त भी, हवाएं भी, फिजाएं भी. चांद देख रहा है टुकुर-टुकुर... 'घोड़े जैसी चाल, हाथी जैसी दुम... ओ सावन राजा कहां से आये तुम...' चिलचिलाती गर्मी वाला दिन चौंककर अपनी सूरत निहारता है...उसे अपना चेहरा बदला हुआ लगता है. 

10 comments:

  1. Maja aa gaya...mujhe bhi aana hai is dance camp men...kab aaooon?

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  2. हर बच्चे की मन की बात..लेकिन पता नहीं क्यों लगता है कि बच्चों को छूट दे भी दें तो वो वीडियो गेम, साथी दोस्तों के साथ मौज मस्ती से ज्यादा सोच नहीं पा रहे हैं। ऐसे में आपको ही उनमें कुछ नया करने का जज्बा पैदा करना होगा। सुंदर लेख के लिए बधाई।

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  3. rohitkaushikmzm@gmail.comMay 21, 2011 at 1:20 PM

    हम बच्चों का सुर लगने ही कहां देते हैं । हमारी अपेक्षाओं के नीचे बच्चों का सुर अपने आप दब जाता है । इस दौर में पढाई के बोझ एवं नियम-कानूनों के बीच बचपन कहां है ? ऐसे माहौल में आपने अच्छा रास्ता सुझाया है ।

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  4. rohitkaushikmzm@gmail.comMay 21, 2011 at 1:23 PM

    हम बच्चों का सुर लगने ही कहां देते हैं । हमारी अपेक्षाओं के नीचे बच्चों का सुर अपने आप दब जाता है । इस दौर में पढाई के बोझ एवं नियम-कानूनों के बीच बचपन कहां है ? ऐसे माहौल में आपने अच्छा रास्ता सुझाया है ।

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  5. एनादर ब्रिक इन द वॉल।

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  6. यही तो सहज स्वाभाविक तरीका है बच्चों को कुछ सिखाने का.

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  7. अनुकरणीय सोच है आपकी .....इस तरह बच्चों का बचपना भी बना रहेगा और उनको नित नयी सफ़लता भी मिलती रहेगी ......

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  8. अच्छी सोच है.......उससे भी बढ़िया आपका उस सोच को क्रियान्वित करने का ढंग है........

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