इन दिनों
अच्छी नहीं लगतीं मुझे
अच्छी लगने वाली चीजें
बिलकुल नहीं भातीं मीठी बातें
दोस्तियों में नहीं आती है
अपनेपन की खुशबू
सुंदर चेहरों पर सजी मुस्कुराहटों से
झांकती है ऊब
नज़र आ जाता है
कहकहों के भीतर का खोखलापन,
सहमतियों से हो चली है विरक्ति
इन दिनों.
दाल पनीली लगती है बहुत
और सब्जियां बेस्वाद
मुलाकातें बहाना भर लगती हैं
सिर टकराने का,
महीने के अंत में आने वाली तनख्वाह भी
अच्छी नहीं लगती
वो हमेशा लगती है बहुत कम
अख़बारों में छपी हीरोइनों की फोटुएं
अच्छी नहीं लगतीं,
न ख़बरें कि बढऩे वाले हैं
रोजगार के अवसर
सुबह अब अच्छी नहीं लगती
कि धूप के पंखों पर सवार होकर
आती हैं ओस की बूंदें
और रातें दिक करती हैं
कि उनके आंचल में
सिवाय बीते दिनों के जख्मों की स्मृतियों के
कुछ भी नहीं
चांद बेमकसद सा
घूमता रहता है रात भर
नहीं भाती है उसकी आवारगी
अमलताश अच्छे नहीं लगते
जाने किसके लिए
बेसबब खिलखिलाते हैं हर बरस
और गुलमोहर अच्छे नहीं लगते
दहकते रहते हैं बस यूं ही
जाने किसकी याद में
तुम्हारा आना अच्छा नहीं लगता
कि आने में हमेशा होती है
जाने की आहट
और जाना तो बिलकुल नहीं रुचता
कि जाकर और करीब जो आ जाते हो तुम
अजब सा मौसम है
अच्छी लगने वाली चीजें
मुझे अच्छी नहीं लगतीं इन दिनों...
प्रतिभाजी, मोक्ष की तरफ बढ़ रही हैं, स्पीड से
ReplyDeleteलेकिन कहन का अंदाज़ कह रहा है कि आजकल उतनी खराब भी नहीं लगती प्यारी लगने वाली चीज़ें...
ReplyDeleteइस कविता में आपने बहुत अच्छे ढंग से अभिव्यक्त किया है एक ख़ास मनःस्थिति को. बधाई...
ReplyDeleteतुम्हारा आना अच्छा नहीं लगता
ReplyDeleteकि आने में हमेशा होती है
जाने की आहट
और जाना तो बिलकुल नहीं रुचता
कि जाकर और करीब जो आ जाते हो तुम
bahut apnepan kee abhivyakti , anmana mann tabhi to kuch achha nahi lag raha
जाने किसकी याद में
ReplyDeleteतुम्हारा आना अच्छा नहीं लगता
कि आने में हमेशा होती है
जाने की आहट
और जाना तो बिलकुल नहीं रुचता
बहुत खूबसूरती से मन के भावों को कहा है ..
उदास हो ?
ReplyDelete@ Babusha-...जाने दो यार.
ReplyDeleteआँख बन्द करिये, गहरी साँस भरिये और घड़ी की सुई वर्तमान पर टिका दीजिये।
ReplyDelete@Praveen Pandey- :-) :-)
ReplyDeletebahut hi badhiya..
ReplyDeletebahut khub..
या तो आपको प्यार हो गया है............या अवसाद है..या..........निर्वाण की ओर जाने का प्रयास है....अरे खैर ये सब छोडिये..........रचना बहुत अच्छी है......हम में से हरेक शख्स के साथ कभी न कभी ऐसा ज़रूर हुआ होगा कि जब चीज़ें अच्छी नहीं लगती ........सुन्दरचित्रण'!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteप्रतिभा जी अवसाद के दौर से गुजर रही हैं? बहुत अच्छा .यह आत्म साक्षात्कार का सही वक्त है .लेकिन सही बताना बिस्तर में पड़े रह कर पुराने गीत/गज़ल सुनना भी नहीं अच्छा लगता?
ReplyDeleteतप कर कुंदन बनने ही वाली हैं बस
सादर
प्रदीप
इंसान के मन की स्थिति
ReplyDeleteकभी कभार ऐसी हो ही उठती है
बस ,, सब कुछ अनजाना-सा ...
अभिव्यक्ति प्रभावशाली है .
ऐसा अच्छा ना लगना कितना खूबसूरत है जो कविता को जन्म दे :-)
ReplyDeleteमन की विरक्ति को बहुत शिद्दत के साथ अभिव्यक्त किया है आपने ! यह अनमनापन, यह ज़मीन से उखडने का अहसास और अस्वीकार का भाव जितनी जल्दी खत्म हो जाये अच्छा है ! अमलतास और गुलमोहर के सौंदर्य को आँखों में भर कर उनका आनद लीजिए ! शनै शनै सब कुछ अच्छा लगाने लगेगा ! सुन्दर शब्दों में गुंथी एक मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteशायद इसी का नाम तिलिस्म है
ReplyDeleteअनमनेपन के बाद आनेवाली मृगतृष्णा का आवेग तीव्र हो सकता है . जरा सम्हल के .:)
ReplyDeleteजाने किसकी याद में
ReplyDeleteतुम्हारा आना अच्छा नहीं लगता
कि आने में हमेशा होती है
जाने की आहट
और जाना तो बिलकुल नहीं रुचता
बहुत खूबसूरत
कभी कभी होता है, ये क्षणिक स्थिति होती है, वैसे इसमें भी अनुभव ले लेना बुरा नहीं है.
ReplyDeleteकभी कभी होता है, ये क्षणिक स्थिति होती है, वैसे इसमें भी अनुभव ले लेना बुरा नहीं है.
ReplyDeleteजाने किसकी याद में
ReplyDeleteतुम्हारा आना अच्छा नहीं लगता
कि आने में हमेशा होती है
जाने की आहट
और जाना तो बिलकुल नहीं रुचता
bahut sateek panktiya.aapki rachna achchi lagi.first time aapke blog per charcha manch ke madhyam se aai hoon.achcha likhti hain aap.god bless you.
अनमनापन भी प्रभावी बन गया .....
ReplyDeleteयह अच्छा न् लगना ही तो वैराग्य है, तब तो आप सही जा रही हैं !
ReplyDeleteइन दिनों
ReplyDeleteअच्छी नहीं लगतीं मुझे
अच्छी लगने वाली चीजें
बहुत अच्छा प्रतिभा जी
मन के भा्वों की सुन्दर अभिव्यक्ति है
ReplyDeletekabh kabhi correct baat kah deti ho jaaneman.ab tak ki sabse hatkar kavita.naveen sir se sahmat hu.
ReplyDeleteऔर जाना तो बिलकुल नहीं रुचता
ReplyDeleteकि जाकर और करीब जो आ जाते हो तुम
very good.
यदि मन से यह खूबसूरत कविता लिखी है, तो मन की इस अवस्था से पार पाना होगा। यह अवस्था हर किसी के जीवन में आती है, जब सबकुछ रसहीन नजर आता है। थोड़ी सी परिपक्वता भी है इसमें। किंतु मन की और परिपक्वता इस स्थिति से बाहर ले आएगी...।
ReplyDelete@Vivek Bhatnagar-आप भी विवेक जी, आप तो ऐसे न थे...
ReplyDeleteअवसाद की स्थिति नहीं है यह । ऐसा हम सभी के साथ होता है । यह जीवन की वास्तविकता है । जीवन की इस वास्वविकता को बडी खूबसूरती के साथ आपने कविता में पिरोया है । दरअसल हमारे जीवन में अनेक फेज चलते हैं । कभी हमें जीवन अर्थहीन लगने लगता है तो कभी उत्साह से पूर्ण । जीवन के ये विभिन्न चरण एक तरह से जीवन को समझने में मदद भी करते है ।
ReplyDeletevyakul man ke aakul bhav.....
ReplyDeleteprabhavshali rachna.
हौसला बढ़ाने का शुक्रिया सभी का!
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