Saturday, February 13, 2010

इन फेवर ऑफ लव


- प्रवीण शेखर
मैं तुम्हें प्रेम करना चाहता था/ जिस तरह से तुम्हें किसी ने नहीं चाहा/ तुम्हारे भाई, पिता, मां और तुम्हारे चारों तरफ के वे तमाम लोग/ जिस तरह से तुम्हें नहीं चाह सके/ मैंने चाहा था तुम्हें उस तरफ से चाहना/ चांद-सितारों की तिरक्षी पड़ती रोशनी में/ दिप-दिप हुआ तुम्हारा चेहरा/ बहुत करीब से देखना.

जिस्म और रूह को भिगो देने वाली मुहब्बत की बारिश को सुखा देती है गर्म हवा. ऐसी हवाओं के बीच प्रेम करने की चाह और चाह को प्रेम में तब्दील करना घटना ही तो है, क्योंकि प्रेम को बाहर की नर्माहटें पालती हैं, यह रेशम के झूले पर एक जोड़ा हंसी बनकर निखरता है. प्रेम रंगों में देखना, खूशबू से सोचना, सुरों में महसूसना सिखाता है.
जब प्रेम को सबसे सॉफ्ट टार्गेट मानकर घायल किया जा रहा हो, जब संस्कृति के सिपाही प्रेम को क्राइम एण्ड पनिशमेंट की बेडिय़ों में जकड़ रहे हैं, जब प्रेम समाज विरोधी कृत्य बनाया जा रहा हो, जब हर कोई क्लाउडियस बनने पर आमादा हो, तो कितना जरूरी हो जाता है प्रेम की बात करना, उसे जीना और प्रेम करना. और तब कितना गैर जरूरी हो जाता है प्रेम के प्रतिरोधों को न$जरअंदाज करना.

प्रेम अपना अलग संसार बनाता है, यह प्रति संसार होता है. अपनी खूबी से यह जब चाहे मौसम को बदल दे, सर्दियों में लू के थपेड़े चलें या गर्मियां बर्फ की सर्दी के नीचे दुबक जायें. यह चाहे तो अमावस की रात जगमग कर दे या पूर्णमासी की रात अंधेरी हो जाये. प्रेम संसार की इस खूबी को लोग मनमानापन मानते हैं. कौन समझेगा यूरोपीय रेनेसां का महान कवि दांते और बिएट्रिस के प्रेम को? चौबीस साल की उम्र में (८ जून १९२०) को बिएट्रिस को देखा था. वह लम्हा विश्व साहित्य के इतिहास की महान प्रेरणा और अद्भाुत गाथा बन गया. बिएट्रिस की मौत ने दांते को बदल दिया. उस लम्हे और बिएट्रिस के अप्रतिम सौंदर्य को दांते $िजन्दगी भर जीते रहे. उसी प्रेम का परिणाम डिवाइन कॉमेडी जैसी अमर रचना थी. प्रेम के उदात्तीकरण का असर इतना गहरा होता है कि यह विफलता के बावजूद धड़कता हुआ इमोशनल स्पेस देता है. इसकी अपूर्णता मन को सालती है लेकिन वेदना और संकल्प जीवन के दस्तावेज बन जाते हैं जैसे बम से तबाह हो चुके वियतनाम में दान कान्ह और निशीना शांजो का प्रेम उनकी मौत के बाद भी धड़क रहा है.

रोमन कवि ओविड (४३ बीसी-१७ एडी) ने एक प्रेमकथा को लिखने का विषय बनाया. मूर्तिकार पिगमैलियन यूनान का बेहद खूबसूरत मर्द था. वह आइवरी, ब्रान्ज मॉरवलकी एक से बढ़कर एक सुन्दर मूर्तियां तराशता और लोग उसके फन के जादू में समा जाते. सारे यूनान की लड़कियां उस पर जान देती थीं, लेकिन पिगमैलियन के दिल के करीब कभी कोई लड़की आ ही नहीं पाती थी. अपनी कला के प्रति समर्पित पिगमैलियन सौंदर्य का सच्चा पुजारी था और उसी सौंदर्य का अंकन मूर्तियों में करना चाहता था. इसलिए उसकी हर मूर्ति सौंदर्य को रीडिफाइन और रीइंटरप्रेट करती. उसने आइवरी की ऐसी मूर्ति बनानी शुरू की जो खुद में कम्पलीट हो. मूर्ति बन गई. वही उसकी आइडियल ब्यूटी थी. उसने मूर्ति का नाम दिया गैलेटिया. पिगमैलियन उसे अपलक निहारता रहा, जब उसकी पलकों ने अपने दरवराजे बन्द किये तो वह उसी के ख्वाबों के साथ लिपटा रहा. जब उसने आंखें खोलीं तो उस दिन यूनान में प्रेम और सौंदर्य की देवी एफ्रोडाइट की उपासना का दिन था. पिगमैलियन पूजाघर गया और देवी एफ्रोडाइट से दुआ की कि गैलेटिया में रूह और $िजन्दगी आ जाए. देवी की आंखों से रोशनी की लकीर निकलकर फिजां में समा गई. वह घर लौटा तो देखा कि देवी अपना काम कर चुकी हैं. मूर्ति गैलेटिया स्त्री रूप में पैडेस्टल से नीचे उतरी और पिगमैलियन को बाहों में भर लिया. उसका कोमल आलिंगन, गर्माहट, नर्म छुअन को वह हमेशा जीता रहा, गढ़ता रहा, रचता रहा सौंदर्य के नये-नये प्रतिमान. ऐसी चाह एफ्रोडाइट जैसी उदारता, गैलेटिया जैसा प्रेम, उसकी नर्म छुअन के लिए ह$जार-ह$जार वैलेन्टाइन्स डे चाहिए, रोज चाहिए.

(लेखक इलाहाबाद के सक्रिय रंगकर्मी हैं. उनका अपना थियेटर ग्रुप बैकस्टेज है)

13 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  2. "प्रेम के उदात्तीकरण का असर इतना गहरा होता है कि यह विफलता के बावजूद धड़कता हुआ इमोशनल स्पेस देता है."
    इस एक पंक्ति ने आलेख को और भी सुन्दर बना दिया है । बेहद खूबसूरत प्रविष्टि । आभार ।

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  3. बेहद शानदार लेख. प्रेम की ऐसी घनी अनुभूति तो बीते जमाने की बातें लगती हैं. बहुत अच्छा लगा इसे यहां पढ़कर.

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है प्रेम की परिभाशा पर धन्यवाद

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  5. लेख पढने में एक अलग ही अनुभूति देता है .

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  6. ऐसा भी लिखा जा सकता है क्या...वाह !

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  7. बहुत सुन्दर और सटीक लिखा है आपने!
    प्रेम दिवस की हार्दिक बधाई!

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  8. बहुत लफड़ा है इस प्रेम-व्रेम में भई..

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  10. बहुत सुंदर लेख. बधाई!

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  11. आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। अब अक्सर इधर भी आना होता रहेगा।

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  12. dear friend pravenji bahut sunder lekh thanks to you and pratibhaji.meraek sher hai tamam umra ungliyan main jiski chho na saka.vo churi vale ko apani kalae deti hai.

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