Monday, February 22, 2010

दर्द का साहिल कोई नहीं

हर मंज़िल इक मंज़िल है नयी और आख़िरी मंज़िल कोई नहीं
इक सैले-रवाने-दर्दे-हयात और दर्द का साहिल कोई नहीं

हर गाम पे ख़ूँ के तूफ़ाँ हैं, हर मोड़ पे बिस्मिल रक़्साँ हैं
हर लहज़ा है क़त्ले-आम मगर कहते हैं कि क़ातिल कोई नहीं

- अली सरदार जाफरी

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