Friday, February 5, 2010

एक टुकड़ा याद


एक याद
सपने की मानिंद
उतरती है
रोज पलकों में,
नींद की चाप
सुनते ही
पंखुड़ी सी खुलने लगती है
आंखों में
रात भर गुनगुनाती है
मिलन के गीत,
दिखाती है सुंदर सपने
जिनमें होते हैं
न धरा, न आकाश
न फूल कोई, न मौसम
न पहाड़, न नदियां
बस एक टुकड़ा मैं
और एक टुकड़ा तुम.
हर सुबह
मैं इसे ख्वाब का
नाम देती हूं.

- प्रतिभा

17 comments:

  1. रात भर गुनगुनाती है
    behtreen rachna..

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  2. अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं....सुन्दर रचना है।बधाई।

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  3. वाह...क्या भावाभिव्यक्ति है....
    कोमल भावों को इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने कि सहज ही वह पाठक मन के स्पर्श में समर्थ है...
    बहुत ही सुन्दर रचना...वाह !!!

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  4. bhavon aur shabdon ka anootha jod hai rachna mein.

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  5. रोज पलकों में,
    नींद की चाप
    सुनते ही
    पंखुड़ी सी खुलने लगती है
    सुन्दर दृश्यांकन किया है
    वाकई ख्वाब तो ऐसे ही आती है.

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  6. बस एक टुकड़ा मैं
    और एक टुकड़ा तुम.
    हर सुबह
    मैं इसे ख्वाब का
    नाम देती हूं
    प्रतिभा जी बहुत सुन्दर रचना है बधाई

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  7. बाद दिनों के, मगर अद्भुत है. इसे मैं ख्वाब का नाम देती हूँ...

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  8. न धरा, न आकाश
    न फूल कोई, न मौसम
    न पहाड़, न नदियां
    बस एक टुकड़ा मैं
    और एक टुकड़ा तुम.
    हर सुबह
    मैं इसे ख्वाब का
    नाम देती हूं.
    bahut sundar bav liye bahut acchi rachana..!!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  9. सपनो वपनो का चक्कर जाने दो काम करो काम .. खजूर लगाने से फल नही मिल्रता

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  10. priyakarur@gmail.comFebruary 8, 2010 at 9:47 AM

    प्यारी सी कविता के लिए बधाई...मै रोज
    इसे चुपके से आकर पढ़ कर लौट जाती हूँ.
    रोज सुबह किसी की याद को ख्वाब का नाम देना कितना
    सुन्दर अहसास है.

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  11. adbhut kavita ke liye pratibhaji badhaie.jai krishna rai tushar allabhad

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  12. अदभुत ! चुस्त कविता ! भाव सज गये हैं खूबसूरती से ।
    आभार ।

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  13. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

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  14. अगर खवाब देख रही हैं तो जरूर पूरे होंगे
    हम सपने देखते ही इसीलिए
    देखती रहें लिखती रहें

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