Saturday, July 11, 2009

मैंने चुना प्रेम



मालूम था
क्या होती है प्रतीक्षा,

कैसा होता है
दु:ख अवसाद, अंधेरा,
किस कदर

मूक कर जाता है
किसी उम्मीद का टूटना,
फिर भी मैंने चुना प्रेम!

11 comments:

  1. achha kiya. vaise bhee
    muhabbt ka naghma har saz par gaya nahi ja sakta.

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  2. चखना ज़रूरी भी तो - अवसाद का स्वाद

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  3. बहुत ही खुब कहा .............अपना दिल तो ऐसा ही होता है जिसे सिर्फ प्यार ही चख्ना होता है ...........बहुत बढिया

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  4. कि प्रेम से उपजा हर क्षण और अहसास है दीर्घजीवी चाहे वो हो दर्द के रूप में....

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  5. प्यार कब कठिनाईयो से डरता है.
    टूटने का एहसास भी टूटने के बाद ही होता है
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  6. ग़ालिब का शेर याद आ गया:
    आये है बेकसी-ए-इश्क पे रोना 'ग़ालिब'
    किसके घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बाद !

    अगर यह न चुनें तो फिर क्या चुना जाए?

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  7. pyar sundar ahsaas hai .iske bina zindagi berang hai .

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  8. kishore ji ki baaton se main sahamat hoon .wo dil ko chhune wali baat kah gaye .sachchi aur gahari .

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  9. कविता प्रभावित करती है।

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  10. namaste pratibha ji, kavita bahut achchhi he. aapka e-mail address janna chahti hoon

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