सुबह-सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई. उनींदी आखों से दरवाजा खोला तो हैरान रह गई. उम्मीदों भरी टोकरी में यादों के सिलसिले...हरियाली में डूबी पूरी कायनात, तन ही नहीं मन को भी भिगोती बूंदों की सौगात लिये जो शख्स खड़ा था उसका चेहरा जाना-पहचाना तो बिलकुल भी नहीं लगा. लेकिन ये जो भी था, न जाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा था।
मैंने पूछा तुम कौन?
तभी बूंदों का सैलाब मुझे भिगो गया।
जवाब मिल चुका था. ये सावन था. मेरी जिंदगी में ऐसा सावन पहले कभी नहीं आया था।
ऐसा भी नहीं कि सावन के झूलों का मुझे अहसास न हो, ऐसा भी नहीं कि बूंदों ने मुझे पहले कभी भिगोया न हो. न ही ऐसा था कि मुझे सारे जहां में ऐसी हरियाली कभी न दिखी हो. अब तक यह सब आंखों से देखा था. बूंदों ने तन को ही छुआ था. लेकिन इस बार यह मौसम एक खुशनुमा अहसास बनकर भीतर तक दाखिल हो गया है।
कैलेण्डर बदलने से महीने बदलते हैं मौसम नहीं बदलते. मौसम अपनी मर्जी से बदलते हैं. ये मौसम हमारी जिंदगी में भी बदलें इसके लिए हमें अपने मन की दुनिया के उन दरवाजों को खोलना होगा, जो कबसे बंद पड़े हैं. चारों ओर देखती हूं तो सावन एक उत्सव के रूप में लोगों की जिंदगी में छाया हुआ है. कहीं तीज तो कहीं राखी की तैयारी. कहीं झूले तो कहीं रेन डांस. रिमझिम बूंदों के बीच गर्मागरम पकौडिय़ां और चाय का मजा. दोस्तों केसाथ पुरानी जींस और गिटार...गाते हुए कॉलेज के दिन याद करना, या सचमुच कॉलेज की कैंटीन में टेबल थपथपाकर कुछ भी गुनगुनाना जारी है. अगर कम शब्दों में कहें तो सावन को मुस्कुराहटों का मौसम कहा जा सकता है।
मेट्रो सिटीज में सावन उस तरह तो बिलकुल नहीं आता, जैसा गांव या कस्बों में आता है. या अब तो शायद गांवों में भी वैसा सावन नहीं आता. अब कोई लड़की नहीं गाती कि अम्मा मेरे बाबुल को भेजो री....कि सावन आया....सावन. अब मायका उतना भी दुर्लभ नहीं रहा कि वहां जाने के लिए सावन का इंतजार करना पड़े या बाबुल, भैया के आने का इंतजार करना पड़े. लड़कियां खुद बगैर बाबुल या भैया के संदेश के कार या स्कूटी ड्राइव करके मायके जा धमकती हैं. यह भी जरूरी नहीं कि वे भैया के तोहफों का इंतजार करें, अब वे भैया के लिए तोहफे लेकर भी जाती हैं. यानी अब मांगना नहीं, बांटना है, तोहफे, प्यार और एक-दूसरे के साथ होने का अहसास. त्योहारों में एक साझापन आ चुका है।
पहले मुझे हमेशा लगता था कि मौसम सबके लिए एक से क्यों नहीं होते. सबकी जिंदगी में इनका असर अलग क्यों होता है. अब समझ में आता है कुदरत भेद नहीं करती, हम खुद करते हैं. हम अपने आपको आवरणों में कैद करके रखते हैं. मुक्त नहीं करते. यही कारण है कि खुशियां, मौसम, सुख हमारे आसपास होकर भी हमसे दूर ही रह जाते हैं. हम उनकी ओर हाथ बढ़ाना ही भूल जाते हैं.मेरी एक दोस्त है. इंडिया छोड़े उसे आठ बरस हो गये। अमेरिका में रहते हुए उसे इंडिया के सारे मौसम, सारी तिथियां, सारी पूर्णमासियां याद रहती हैं. मुझे याद है पिछले बरस की उसकी वो बेसब्र सी आवाज, जब उसने फोन पर कहा था, यार, यहां तो बारिश ही नहीं हो रही है. वहां का सावन कैसा है? वहां तो खूब बारिश हो रही होगी ना? मैं सच कहती हूं उसके फोन करने से पहले तक मुझे सावन का ध्यान ही नहीं था। आज मैं दावे से कह सकती हूं कि उसकी जिंदगी में सावन बहुत पहले आ चुका होगा।
अगर आपकी जिंदगी में कोई मौसम एक बार दाखिल हो जाए तो वह वापस नहीं जा सकता. फिर आप दुनिया के चाहे जिस कोने में हों. हमें इन मौसमों को अपनी जिंदगी में आने देने का हुनर सीखना होगा. उम्मीद करती हूं हम सबकी जिंदगी में इस बार जो सावन आये उसकी महक, उसकी हरियाली, उसका मन को भिगो देन वाला स्पर्श हम सब महसूस कर सकें, जिंदगी की तमाम आपाधापियों के बावजूद. यह सावन किसी की याद में नहीं, साथ में बीते और ता-उम्र इसकी खुशबू बरकरार रहे.....
- प्रतिभा
(राजा रवि वर्मा की पेंटिंग मोहिनी झूला झूलते हुए )
मैंने पूछा तुम कौन?
तभी बूंदों का सैलाब मुझे भिगो गया।
जवाब मिल चुका था. ये सावन था. मेरी जिंदगी में ऐसा सावन पहले कभी नहीं आया था।
ऐसा भी नहीं कि सावन के झूलों का मुझे अहसास न हो, ऐसा भी नहीं कि बूंदों ने मुझे पहले कभी भिगोया न हो. न ही ऐसा था कि मुझे सारे जहां में ऐसी हरियाली कभी न दिखी हो. अब तक यह सब आंखों से देखा था. बूंदों ने तन को ही छुआ था. लेकिन इस बार यह मौसम एक खुशनुमा अहसास बनकर भीतर तक दाखिल हो गया है।
कैलेण्डर बदलने से महीने बदलते हैं मौसम नहीं बदलते. मौसम अपनी मर्जी से बदलते हैं. ये मौसम हमारी जिंदगी में भी बदलें इसके लिए हमें अपने मन की दुनिया के उन दरवाजों को खोलना होगा, जो कबसे बंद पड़े हैं. चारों ओर देखती हूं तो सावन एक उत्सव के रूप में लोगों की जिंदगी में छाया हुआ है. कहीं तीज तो कहीं राखी की तैयारी. कहीं झूले तो कहीं रेन डांस. रिमझिम बूंदों के बीच गर्मागरम पकौडिय़ां और चाय का मजा. दोस्तों केसाथ पुरानी जींस और गिटार...गाते हुए कॉलेज के दिन याद करना, या सचमुच कॉलेज की कैंटीन में टेबल थपथपाकर कुछ भी गुनगुनाना जारी है. अगर कम शब्दों में कहें तो सावन को मुस्कुराहटों का मौसम कहा जा सकता है।
मेट्रो सिटीज में सावन उस तरह तो बिलकुल नहीं आता, जैसा गांव या कस्बों में आता है. या अब तो शायद गांवों में भी वैसा सावन नहीं आता. अब कोई लड़की नहीं गाती कि अम्मा मेरे बाबुल को भेजो री....कि सावन आया....सावन. अब मायका उतना भी दुर्लभ नहीं रहा कि वहां जाने के लिए सावन का इंतजार करना पड़े या बाबुल, भैया के आने का इंतजार करना पड़े. लड़कियां खुद बगैर बाबुल या भैया के संदेश के कार या स्कूटी ड्राइव करके मायके जा धमकती हैं. यह भी जरूरी नहीं कि वे भैया के तोहफों का इंतजार करें, अब वे भैया के लिए तोहफे लेकर भी जाती हैं. यानी अब मांगना नहीं, बांटना है, तोहफे, प्यार और एक-दूसरे के साथ होने का अहसास. त्योहारों में एक साझापन आ चुका है।
पहले मुझे हमेशा लगता था कि मौसम सबके लिए एक से क्यों नहीं होते. सबकी जिंदगी में इनका असर अलग क्यों होता है. अब समझ में आता है कुदरत भेद नहीं करती, हम खुद करते हैं. हम अपने आपको आवरणों में कैद करके रखते हैं. मुक्त नहीं करते. यही कारण है कि खुशियां, मौसम, सुख हमारे आसपास होकर भी हमसे दूर ही रह जाते हैं. हम उनकी ओर हाथ बढ़ाना ही भूल जाते हैं.मेरी एक दोस्त है. इंडिया छोड़े उसे आठ बरस हो गये। अमेरिका में रहते हुए उसे इंडिया के सारे मौसम, सारी तिथियां, सारी पूर्णमासियां याद रहती हैं. मुझे याद है पिछले बरस की उसकी वो बेसब्र सी आवाज, जब उसने फोन पर कहा था, यार, यहां तो बारिश ही नहीं हो रही है. वहां का सावन कैसा है? वहां तो खूब बारिश हो रही होगी ना? मैं सच कहती हूं उसके फोन करने से पहले तक मुझे सावन का ध्यान ही नहीं था। आज मैं दावे से कह सकती हूं कि उसकी जिंदगी में सावन बहुत पहले आ चुका होगा।
अगर आपकी जिंदगी में कोई मौसम एक बार दाखिल हो जाए तो वह वापस नहीं जा सकता. फिर आप दुनिया के चाहे जिस कोने में हों. हमें इन मौसमों को अपनी जिंदगी में आने देने का हुनर सीखना होगा. उम्मीद करती हूं हम सबकी जिंदगी में इस बार जो सावन आये उसकी महक, उसकी हरियाली, उसका मन को भिगो देन वाला स्पर्श हम सब महसूस कर सकें, जिंदगी की तमाम आपाधापियों के बावजूद. यह सावन किसी की याद में नहीं, साथ में बीते और ता-उम्र इसकी खुशबू बरकरार रहे.....
- प्रतिभा
(राजा रवि वर्मा की पेंटिंग मोहिनी झूला झूलते हुए )
I am also Raja's fan particularly his women's . Oh those flowing long locks and sarees ! They aren't a common sight any more . Compulsions of modern life have taken a toll on long , wet hair and sarees .
ReplyDeleteकितना प्यारा लिखती हैं आप , मैं तो कहूंगी कितना अद्भुत सोचती हैं आप |
ReplyDeleteबिना सोचे कोई लिख ही नहीं सकता |
वो रूहानी इश्क से सराबोर कर दिया |
यह तो सही कहा मैम कि सिर्फ कैलेंडर की तारीखों के बदलने पर मौसम नहीं बदलते...मौसम कब मेहरबान होगा..यह कोई नहीं जानता वरना अभी तक हम लखनऊ वासी एक अच्छी बारिश के लिए तरसते नहीं होते..
ReplyDeleteआपके शब्दों ने वर्चुअल रूप से ही सही..सावन की कुछ ठंडक का एहसास तो कराया ही है...बधाई....
सावन सिर्फ बारिश का आना भर नहीं है। अगर सिर्फ बारिश से सावन आता तो मुम्बई में तो बाढ आ चुकी है। सावन हमारे और आपके अंदर होता है। और जब बाहर सावन आता है तो मन का सावन अपने आप हिलोरे लेने लगता है। सावन सिर्फ मौसम नहीं। सावन एक एहसास है जो कह ही लोगों के पास होता है। प्रतिभा जी यह आप के पास है। उम्ममीद करूंगी की यह सभी के पास हो। आमीन
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteवीनस केसरी
पोस्ट का आरम्भ पढ़ते ही लगा कि आपने सुन्दर बात कही फिर जैसे जैसे आगे पढता गया बात और सुन्दर होती गयी. अच्छा लिखा है
ReplyDeleteAp to bahut achha likhti hain.
ReplyDeletePl. also visit my blog & see my latest photograph.