Saturday, June 15, 2024
अब जीने से डरती नहीं हूँ
जैसे कोई अपना ही ख़्वाब रखा हो जरा सी दूरी पर। टुकुर-टुकुर ताक रहा हो। हाथ बढ़ाते हुए भाग जाता हो। जैसे बचपन का कोई खेल। ऐसे ही तुम आए थे जीवन में। 'आए थे'...इसे लिखते हुए जैसे खुद का ही कोई हिस्सा कटकर गिर गया हो। मैंने वाक्य को दुरुस्त किया और लिखा ऐसे ही तुम आए जीवन में।
कोई भी जिया हुआ लम्हा हमसे कभी जुदा नहीं होता। और हम व्यक्ति के जुदा होते ही उस खुश लम्हे की स्मृति में भी उदास रंग घोलने लगते हैं। हमें जीना नहीं आता। हमें खुश होना नहीं आता। हमें उदास होना भी नहीं आता। आज जब अपने जिये हुए लम्हों को छूकर देखती हूँ तो वो हँसकर पूरे घर में बिखर जाते हैं। मेरी देह में जैसे सावन उतर आता है। वो सारा जिया हुआ संगीत, सारी जी हुई शरारतें, सारा साथ पैदल चला हुआ, सारा साथ में भीगा हुआ सब कुछ पोर पोर में खिल उठा है।
हम कहते हैं एक लम्हे का मुक्कमल सुख पूरे जीवन की मुश्किलों पर भारी होता है। वो एक लम्हा जो हमारे समूचे वजूद को रूई के फाहे की तरह हल्का बना देता है। तमाम उलझनों से निकाल लेता है, वही लम्हा तो जीवन है।
मैंने उन लम्हों को यादों के कोठार में बंद करके उन लम्हों की प्रतिकृति बनाने की कोशिश में खुद काफी जख्मी कर लिया। और तब अक्ल आई कि प्रतिकृति सिर्फ प्रतिकृति ही है। मैंने कोठार का दरवाजा खोला और घर स्मृति में बसे खुश लम्हों की खुशबू से भर गया। Keeny G का संगीत मेरी मुस्कुराहट का सबब कभी भी बन सकता है।
मैं अब ख़्वाब देखने से डरती नहीं हूँ। उन्हें छूने से भी नहीं घबराती। और हाँ, अब मैं जीने से भी नहीं डरती हूँ। इस सुबह में जीवन खिला हुआ है। नींद खुल गयी है और ख़्वाब टूटा नहीं है।
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