Wednesday, March 6, 2024

उम्मीद




एक रोज जरा सी लापरवाही से
उम्मीद के जो बीज
हथेलियों से छिटक कर 
बिखर गए थे

सोचा न था
कि वो इस कदर उग आएंगे
और ठीक उस वक़्त थामेंगे हाथ
जब मन काआसमान
डूबा होगा घनघोर कुहासे में

डब डब करती आँखों के आगे
वादियाँ हथेलियाँ बिछा देंगी
और समेट लेंगी आँखों में भरे मोती सारे

स्मृतियों में ठहर गए गम को
कोई पंछी अपनी चोंच से
कुतरेगा धीरे-धीरे

जब कोई सिहरन वजूद को घेरेगी 
मौसम अपने दोशाले में लपेटकर
माथा चूम लेगा

उगता हुआ सूरज
मुश्किल वक़्त को मुस्कुराकर देख रहा है...

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