Friday, March 1, 2024

अपनेपन की रोशनी


सांत्वना और सहानुभूति के शब्दों की हथेलियाँ
खाली ही मिलीं हमेशा की तरह
उनके चेहरे पर अपनेपन का आवरण था
उनके दुख जताते शब्दों में
छुपा था एक मीठा सा सुख भी

अक्सर वे कंधे ही सबसे कमजोर मिले
जिन्होंने कंधा बनने की खूब प्रैक्टिस की थी
और जिन्हें अब तक नहीं मिला था मौका
अपनी प्रतिभा दिखाने का

'सब ठीक हो जायेगा' की अर्थहीनता
किर्रर्रर्रर्र की आवाज़ की तरह
कानों को चुभ रही थी

'मैं हूँ न, परेशान न हो' कहकर जो गए
वो कभी लौटे नहीं फिर

इन सबके बीच
कुछ निशब्द हथेलियाँ
हाथों को थामे चुपचाप बैठी रहीं

अंधेरा घना था लेकिन
अपनेपन की रोशनी भी कम नहीं थी।

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 02 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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  2. 'मैं हूँ न, परेशान न हो' कहकर जो गए
    वो कभी लौटे नहीं फिर
    बेहतरीन 🙏

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