Thursday, March 23, 2023

जाऊँगा कहाँ, रहूँगा यहीं


वो दुःख है
जायेगा कहाँ,
रहेगा यहीं
कभी मुस्कान में छुपकर
कभी खिलखिलाहट में
कभी 'सब ठीक है' के भीतर
तानकर सो जाएगा लम्बी नींद
उसकी नींद के दौरान हम
तनिक खुश होंगे
और तनिक सतर्क
कि कहीं लौट न आये फिर से
और एक रोज जब
आईना देख रहे होंगे
हमारी आँखों के नीचे आये
काले घेरों के बीच से
वो झांकेगा
और मुस्कुरा कर कहेगा
मैं कोई सुख नहीं हूँ 
कि चला जाऊँगा   
मैं तुम्हारा दुःख हूँ
जाऊँगा कहाँ
रहूँगा यहीं, तुम्हारे पास. 

3 comments:

  1. मैं तुम्हारा दुःख हूँ कहाँ जाऊँगा....
    सचमुच।
    बहुत अच्छी रचना।
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ मार्च २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. सही कहा...सुख नहीं जो चला जाऊँ
    दुख हूँ यहीं रहूंगा तुम्हारे पास
    बहुत सटीक...
    लाजवाब सृजन
    मेरी रचना की कुछ पंक्तियां याद आ गई इसे पढ़कर...
    दुख ही तो है सच्चा साथी
    सुख तो अल्प समय को आता है
    मानव जब तन्हा रहता है
    दुख ही तो साथ निभाता है ।

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  3. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।

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