जब बसन्त आता है
तब बसन्त कहाँ आता है
वो तो आता है तब
जब आती है मिलने की आस
जब खिलते हैं मन के पलाश
जब भरोसे पर बढ़ता है तनिक और भरोसा
जब टूटने से बच जाता है कोई ख़्वाब
जब यह धरती बच्चों की खिलखिलाहट से
गूँज उठती है
जब प्रेयसी के माथे पर सजती है
सूरज की पहली किरन
जब बसंत आता है तब कहाँ आता है बसंत
वो तो आता है तब जब आती हैं
तुम्हारे आने की आहटें...
बहुत सुंदर
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