नवम्बर की अंजुरियों में
धूप खिलने लगी हैउम्मीद की शाखें भर उठी हैं
ख्वाबों से
मुसाफिर फिर से व्याकुल हैं
रास्तों से भटक जाने को
नीले पंखों वाली चिड़िया
मीर के दीवान से सर टिकाये बैठी है
मध्धम सी आंच पर
पक रहा है इंतज़ार
एक ज़िद है कि
झरने से पहले समेट लेनी है
लम्हों की ख़ुशबू
नवम्बर की कलाई पर
बांधना है प्यार.
Bahut khoobsurat poster hai ye ...
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