Saturday, July 2, 2022

ये कोई ख़्वाब नहीं था...



आज एक नदी मुझसे मिलने आई मेरे घर
फिर आया एक पूरा जंगल
आया जंगल तो आये परिंदे भी
फिर मैंने देखा खिड़की से झाँक रहा था बादल
लिए ढेर सारी बारिश
खोली खिड़की तो आ गया बादल भी बारिश समेत 

अलसाता इठलाता समन्दर आया कुछ देर बाद
राग मल्हार आया तो साथ आया मारवा भी
मीर आये बाद में पहले फैज़ और ग़ालिब आये
पीले लिबास में सजी मुस्कुराहटें आयीं आहिस्ता आहिस्ता
रजनीगन्धा आये तमाम साथ अपने लाये सूरजमुखी
तुम आये तो आज इस घर में देखो न
चला आया कुदरत का समूचा कारोबार

इस धरती को खूबसूरत बनाने का ख़्वाब जो रहता था इस घर में
ये सब आये उस ख़्वाब को बचाने की ख़ातिर
तुम आये तो आई उम्मीद, शान्ति, प्यार
तुम आये तो आई बहार
 
जब देख रही थी मैं इन सबको अपने घर में
आँखें खुली हुई थीं कि ये कोई ख्वाब नहीं था
कि मेरी हथेलियाँ जब हों तुम्हारे हाथों में
ख़्वाब कोई नामुमकिन कहाँ रह जाता है...

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