‘कविता कारवां मार्ग...’ उस सड़क के किनारे लगे बोर्ड को देख आँखें ख़ुशी से छलक पड़ी थीं. जैसे किसी ख़्वाब के सामने खड़ी हूँ. उंहू...इत्ते बड़े तो ख़्वाब देखे भी न हमने बस एक शाम कविताओ के नाम हो. ईर्ष्या, द्वेष, प्रतियोगिता इन सबसे दूर, अपनी कविताओं की जय जयकार से दूर बस अपनी पसंद की कविताओं की संगत में बैठना दो घड़ी और बस ज़ेहन की गठरी में समेट लेना कुछ नया अनुभव, कोई नई कविता, कोई नया कवि.
इसी देहरादून में 6 बरस पहले इस ख़्वाब का अंकुर बोया था. सुभाष और लोकेश ओहरी जी के साथ मिलकर. उस कविताओं से प्रेम के अंकुर को पानी खाद दिया सारे कविता प्रेमियों ने. आज छह बरस बाद देहरादून में कविता कारवां मार्ग का उद्घाटन हुआ गीता गैरोला दी के हाथों और साक्षी बने सब कविता प्रेमी.
कविता कारवां का यह सफर बीच-बीच में किसी नदी किनारे, किसी पहाड़ी पर, किसी पेड़ के नीचे सुस्ता जरूर लेता है लेकिन इसका चलना लगातार जारी है...और इस सफ़र में वो सब शामिल हैं जिन्हें कविताओं से प्यार है. आज किसी भी शहर में किसी भी देश में हुई किसी भी बैठक में शामिल वो सारे लोग याद आ रहे हैं जो इस सफर में शामिल हैं. वो भी जो शामिल होने की इच्छा से भरे हैं. ऋषभ, तुम्हारी इस अवसर पर सबसे ज्यादा याद आई...तुम होते तो यकीनन तुम्हारी आँखें भी छलक रही होतीं जैसे मेरी छलक पड़ी थीं...दुनिया भर को एक परिवार के सूत्र में बाँधने वाले ‘कविता कारवां मार्ग’ पर आप सभी का स्वागत व इंतजार है...
कविताओं से ऐसा प्यार देखा है कहीं?
बहुत सुंदर
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