Saturday, December 11, 2021

अठारह बरस की सहेलियाँ



अनाड़ीपन से भरपूर 18 बरस माँ बनने के
पहली बार पेट में तितली सी उड़ी
पता चला कि तुम आई हो

कुछ महीनों बाद तुमने 
पेट के भीतर से थप थप की
मेरी माँ ने हंसकर बताया 
मेरे माँ बनने के बारे में

पहली थप थप की स्मृति
अब तक तक रोयें खड़े करती है
दफ्तर में थी उस वक्त
किसी मीटिंग में शायद

कितनी ही देर तक रोई थी मैं
वाशरूम में जाकर 
कैसा सुकून था उस पहली थप थप में
कैसा आनन्द था उस रोने में

तुम समझ गयीं कि
पेट के भीतर से की जाने वाली 
तुम्हारी थप थप
पसंद है तुम्हारी माँ को 
तुम्हारी थप थप बढ़ने लगी

तुम्हारी थप थप में सुना पहली बार
जीवन का संगीत
पहली बार दुनिया इतनी खूबसूरत लगी
पहली बार खुद से प्रेम हुआ
पहली बार पंख उगते महसूस हुए

तुम आईं जब गोद में पहली बार 
लगा खुद को छुआ है पहली बार 

मैं बदल रही थी
मैं बेपरवाह हो रही थी
तुम और मैं
मैं और तुम
 
तुमने ही एक संकोची, दब्बू, सी लड़की को
निर्भीक स्त्री बनाया
तुमने ही तो जीवन के सही अर्थ समझाए

तुम्हारी नन्ही उँगलियों में 
अपनी उँगलियों को फंसाकर
बैठे रहना जैसे इबादत में बैठे रहना हो

तुम्हारी किलकारियां,
तुम्हारी जिद, तुम्हारा रुदन
तुम नहीं जानतीं कि 
तुम इस दुनिया में नहीं आई थीं
तुम खुद एक दुनिया बनकर आईं  
जिसमें तुम्हारी माँ को मिला खुला आसमान
ख़्वाहिशें, अरमान, उम्मीदें, सपने
तभी तुम्हारा नाम ख़्वाहिश हुआ
कि ख़्वाहिश के मानी पहली बार 
तुमसे ही तो जाने थे

तुम एक नया शब्दकोश लेकर आई 
एक पूरा नया संसार
कोई पूछता तुम्हारे नाम का अर्थ
तुम किलक कर कहती
'मैं अपनी मम्मा की ख़्वाहिश हूँ'
लेकिन तुम मम्मा की ख़्वाहिश भर नहीं थीं
मम्मा की ख़्वाहिशों के जागने की वजह थीं
तुम पर मम्मा की ख़्वाहिशों का बोझ नहीं
खुद अपनी ख़्वाहिशों को पहचानना 
उन्हें जीने की इच्छा से भरा होना था 

हम साथ जन्मे हैं
हम साथ बड़े हुए हैं
हम साथ में सीख रहे हैं माँ-बेटी होना
दोस्त होना

हम गलतियाँ करते हैं
मिलकर उन्हें सुधारते हैं
एक-दूसरे से शिकायत करते हैं
मिलकर उन्हें दूर भी करते हैं.

हम 18 बरस की सहेलियां हैं
कभी तुम माँ बनकर मुझे हिदायतें देती हो
समझाती हो ख़याल रखती हो
कभी मैं करती हूँ यही सब
कभी हम दोनों सहेलियां बन उछलती हैं, कूदती हैं

18 बरस की माँ की आँखों में नए सपने जाग रहे  हैं
कुछ नये डर सांस ले रहे हैं
अब अपनी उंगली 
उन नन्ही उंगलियों से निकालने का समय है 
पंखों को परवाज़ देने का समय है     

18 बरस की बेटी खुद को तैयार करती है
जीवन के नए सबक सीखने को
नये दोस्तों की दुनिया में जाने को
नए रास्ते तलाशने को   

तो मेरी 18 बरस की दोस्त
अब हमें नए सफर पर निकलना है
साथ-साथ भी दूर-दूर भी

तुम्हारे हॉस्टल के कमरे की तैयारी करते हुए
महसूस हो रहा है वैसा ही 
जैसा महसूस होता था 
तुम्हारे दुनिया में आने की तैयारी के समय
वही नन्हे मोज़े, नैपी, हाथ से बुने स्वेटर, हिदायतें
कि अब सामान बदला है बस   

आओ हाथ थाम लें जोर से कि 
इस नये सफर को भी हमें
मिलकर खुशगवार बनाना है
दूरी शब्द के अर्थ को बदल देना है अपने प्रेम से
और इस दुनिया को खूबसूरत बनाने को
चलना है एक नए सफर पर...

11 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 12 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-12-21) को अपने दिल के द्वार खोल दो"(चर्चा अंक4276)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. अविस्मरणीय! अद्भुत,अहा स्वर्णिम पलों से शुरू एक स्नेह सिंचित यात्रा।
    बिटिया को 18वें जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं शुभाशीष।
    जीवन निर्धुम संवरता रहे दोनों माँ बेटी का ।
    सस्नेह।

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  4. सत्य दिल को छूती हुई

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  5. मां और बेटी के रिश्ते को बयां करती हुई भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही खूबसूरत और मार्मिक व हृदयस्पर्शी रचना

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  6. माँ और बेटी के रिश्ते को खूबसूरत शब्द दिए हैं आपने, सचमुच सन्तान के जन्म के साथ ही माँ का भी दूसरा जन्म होता है, वात्सल्य के साथ साथ कितने ही जीवन मूल्यों से उसका परिचय होता है, हर हाल में सन्तान की रक्षा के लिए आत्मशक्ति का भान होता है. आने वाले जीवन के लिए आप दोनों को ढेर सारी शुभकामनायें !

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  7. शानदार एहसासों की अभिव्यक्ति

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  8. निशब्द हूँ प्रतिभा जी | ममत्व की गरिमा बढाती अद्भुत अनुभूतियाँ | माँ-बेटी का संबध शाश्वत है |इसकी जगह कोई नहीं ले सकता | अविस्मरनीय भावनाओं का सुंदर श्न्ब्दान्कं किया है आपने | बिटिया को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं और स्नेहाशीष |

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  9. बहुत दिलफरेब पेशकश। ख्वाहिश को बहुत सारा प्यार।

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