अनाड़ीपन से भरपूर 18 बरस माँ बनने के
पहली बार पेट में तितली सी उड़ी
पता चला कि तुम आई हो
कुछ महीनों बाद तुमने
तुमने ही एक संकोची, दब्बू, सी लड़की को
निर्भीक स्त्री बनाया
तुमने ही तो जीवन के सही अर्थ समझाए
तुम एक नया शब्दकोश लेकर आई
एक पूरा नया संसार
कोई पूछता तुम्हारे नाम का अर्थ
तुम किलक कर कहती
'मैं अपनी मम्मा की ख़्वाहिश हूँ'
लेकिन तुम मम्मा की ख़्वाहिश भर नहीं थीं
मम्मा की ख़्वाहिशों के जागने की वजह थीं
तुम पर मम्मा की ख़्वाहिशों का बोझ नहीं
खुद अपनी ख़्वाहिशों को पहचानना
उन्हें जीने की इच्छा से भरा होना था
पहली बार पेट में तितली सी उड़ी
पता चला कि तुम आई हो
कुछ महीनों बाद तुमने
पेट के भीतर से थप थप की
मेरी माँ ने हंसकर बताया
मेरी माँ ने हंसकर बताया
मेरे माँ बनने के बारे में
पहली थप थप की स्मृति
अब तक तक रोयें खड़े करती है
दफ्तर में थी उस वक्त
किसी मीटिंग में शायद
कितनी ही देर तक रोई थी मैं
वाशरूम में जाकर
कैसा सुकून था उस पहली थप थप में
कैसा आनन्द था उस रोने में
तुम समझ गयीं कि
पेट के भीतर से की जाने वाली
पहली थप थप की स्मृति
अब तक तक रोयें खड़े करती है
दफ्तर में थी उस वक्त
किसी मीटिंग में शायद
कितनी ही देर तक रोई थी मैं
वाशरूम में जाकर
कैसा सुकून था उस पहली थप थप में
कैसा आनन्द था उस रोने में
तुम समझ गयीं कि
पेट के भीतर से की जाने वाली
तुम्हारी थप थप
पसंद है तुम्हारी माँ को
तुम्हारी थप थप बढ़ने लगी
तुम्हारी थप थप में सुना पहली बार
पसंद है तुम्हारी माँ को
तुम्हारी थप थप बढ़ने लगी
तुम्हारी थप थप में सुना पहली बार
जीवन का संगीत
पहली बार दुनिया इतनी खूबसूरत लगी
पहली बार खुद से प्रेम हुआ
पहली बार पंख उगते महसूस हुए
पहली बार दुनिया इतनी खूबसूरत लगी
पहली बार खुद से प्रेम हुआ
पहली बार पंख उगते महसूस हुए
तुम आईं जब गोद में पहली बार
लगा खुद को छुआ है पहली बार
मैं बदल रही थी
मैं बेपरवाह हो रही थी
तुम और मैं
मैं और तुम
तुम और मैं
मैं और तुम
तुमने ही एक संकोची, दब्बू, सी लड़की को
निर्भीक स्त्री बनाया
तुमने ही तो जीवन के सही अर्थ समझाए
तुम्हारी नन्ही उँगलियों में
अपनी उँगलियों को फंसाकर
बैठे रहना जैसे इबादत में बैठे रहना हो
बैठे रहना जैसे इबादत में बैठे रहना हो
तुम्हारी किलकारियां,
तुम्हारी जिद, तुम्हारा रुदन
तुम नहीं जानतीं कि
तुम नहीं जानतीं कि
तुम इस दुनिया में नहीं आई थीं
तुम खुद एक दुनिया बनकर आईं
तुम खुद एक दुनिया बनकर आईं
जिसमें तुम्हारी माँ को मिला खुला आसमान
ख़्वाहिशें, अरमान, उम्मीदें, सपने
तभी तुम्हारा नाम ख़्वाहिश हुआ
कि ख़्वाहिश के मानी पहली बार
तुमसे ही तो जाने थे
तुम एक नया शब्दकोश लेकर आई
एक पूरा नया संसार
कोई पूछता तुम्हारे नाम का अर्थ
तुम किलक कर कहती
'मैं अपनी मम्मा की ख़्वाहिश हूँ'
लेकिन तुम मम्मा की ख़्वाहिश भर नहीं थीं
मम्मा की ख़्वाहिशों के जागने की वजह थीं
तुम पर मम्मा की ख़्वाहिशों का बोझ नहीं
खुद अपनी ख़्वाहिशों को पहचानना
उन्हें जीने की इच्छा से भरा होना था
हम साथ जन्मे हैं
हम साथ बड़े हुए हैं
हम साथ में सीख रहे हैं माँ-बेटी होना
दोस्त होना
हम गलतियाँ करते हैं
मिलकर उन्हें सुधारते हैं
एक-दूसरे से शिकायत करते हैं
मिलकर उन्हें दूर भी करते हैं.
हम साथ बड़े हुए हैं
हम साथ में सीख रहे हैं माँ-बेटी होना
दोस्त होना
हम गलतियाँ करते हैं
मिलकर उन्हें सुधारते हैं
एक-दूसरे से शिकायत करते हैं
मिलकर उन्हें दूर भी करते हैं.
हम 18 बरस की सहेलियां हैं
कभी तुम माँ बनकर मुझे हिदायतें देती हो
समझाती हो ख़याल रखती हो
कभी मैं करती हूँ यही सब
कभी हम दोनों सहेलियां बन उछलती हैं, कूदती हैं
18 बरस की माँ की आँखों में नए सपने जाग रहे हैं
कुछ नये डर सांस ले रहे हैं
कभी तुम माँ बनकर मुझे हिदायतें देती हो
समझाती हो ख़याल रखती हो
कभी मैं करती हूँ यही सब
कभी हम दोनों सहेलियां बन उछलती हैं, कूदती हैं
18 बरस की माँ की आँखों में नए सपने जाग रहे हैं
कुछ नये डर सांस ले रहे हैं
अब अपनी उंगली
उन नन्ही उंगलियों से निकालने का समय है
पंखों को परवाज़ देने का समय है
18 बरस की बेटी खुद को तैयार करती है
जीवन के नए सबक सीखने को
नये दोस्तों की दुनिया में जाने को
जीवन के नए सबक सीखने को
नये दोस्तों की दुनिया में जाने को
नए रास्ते तलाशने को
तो मेरी 18 बरस की दोस्त
अब हमें नए सफर पर निकलना है
साथ-साथ भी दूर-दूर भी
तो मेरी 18 बरस की दोस्त
अब हमें नए सफर पर निकलना है
साथ-साथ भी दूर-दूर भी
तुम्हारे हॉस्टल के कमरे की तैयारी करते हुए
महसूस हो रहा है वैसा ही
महसूस हो रहा है वैसा ही
जैसा महसूस होता था
तुम्हारे दुनिया में आने की तैयारी के समय
वही नन्हे मोज़े, नैपी, हाथ से बुने स्वेटर, हिदायतें
वही नन्हे मोज़े, नैपी, हाथ से बुने स्वेटर, हिदायतें
कि अब सामान बदला है बस
आओ हाथ थाम लें जोर से कि
आओ हाथ थाम लें जोर से कि
इस नये सफर को भी हमें
मिलकर खुशगवार बनाना है
दूरी शब्द के अर्थ को बदल देना है अपने प्रेम से
और इस दुनिया को खूबसूरत बनाने को
चलना है एक नए सफर पर...
मिलकर खुशगवार बनाना है
दूरी शब्द के अर्थ को बदल देना है अपने प्रेम से
और इस दुनिया को खूबसूरत बनाने को
चलना है एक नए सफर पर...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 12 दिसम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-12-21) को अपने दिल के द्वार खोल दो"(चर्चा अंक4276)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
अविस्मरणीय! अद्भुत,अहा स्वर्णिम पलों से शुरू एक स्नेह सिंचित यात्रा।
ReplyDeleteबिटिया को 18वें जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं शुभाशीष।
जीवन निर्धुम संवरता रहे दोनों माँ बेटी का ।
सस्नेह।
बहुत खूब।
ReplyDeleteसत्य दिल को छूती हुई
ReplyDeleteमां और बेटी के रिश्ते को बयां करती हुई भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही खूबसूरत और मार्मिक व हृदयस्पर्शी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteमाँ और बेटी के रिश्ते को खूबसूरत शब्द दिए हैं आपने, सचमुच सन्तान के जन्म के साथ ही माँ का भी दूसरा जन्म होता है, वात्सल्य के साथ साथ कितने ही जीवन मूल्यों से उसका परिचय होता है, हर हाल में सन्तान की रक्षा के लिए आत्मशक्ति का भान होता है. आने वाले जीवन के लिए आप दोनों को ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeleteशानदार एहसासों की अभिव्यक्ति
ReplyDeleteनिशब्द हूँ प्रतिभा जी | ममत्व की गरिमा बढाती अद्भुत अनुभूतियाँ | माँ-बेटी का संबध शाश्वत है |इसकी जगह कोई नहीं ले सकता | अविस्मरनीय भावनाओं का सुंदर श्न्ब्दान्कं किया है आपने | बिटिया को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं और स्नेहाशीष |
ReplyDeleteबहुत दिलफरेब पेशकश। ख्वाहिश को बहुत सारा प्यार।
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