कुछ रुकी हुई रुलाइयां हैं, कुछ भिंची हुई मुठ्ठियाँ हैं, कुछ रातों की जाग है कुछ बारिशों की भागमभाग है. कुछ ख़्वाब हैं अनदेखे से कोई खुशबू है बतियाती सी. कविताओं का पता नहीं लेकिन मन की कुछ गिरहें हैं जिन्हें कागज पर उतारकर जीना तनिक आसान करने की कोशिश भर है. ये 'ख़वाब जो बरस रहा है' ये आपको भी मोहब्बत से भिगो दे यही नन्ही सी इच्छा है.
दोस्तों और पाठकों का प्यार था जिसने हौसला दिया एक जगह सहेज देने का. मन एकदम भरा हुआ है. पलकें नम हैं. प्यार ऐसे ही तो भिगोता है.
वाह👌
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
पढ़ते हैं👍
ReplyDeleteपुस्तक प्रकाशन के लिए अनंत बधाई।
ReplyDeleteसही कहा...बहुत सटीक...
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत सुंदर
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