Sunday, May 9, 2021

फ़िक्र से भरी बेटियां माँ जैसी हो जाती हैं


गोलियों वाली नींद मुझे अच्छी नहीं लगती. लगता है उधार की नींद है. गोलियों वाली नींद से डर भी लगता है. गोलियों की आदत जो लग जाती है फिर इससे निकलना आसान जो नहीं होता. यूँ किसी भी आदत से निकलना कहाँ आसान होता है. तुम्हारी याद की आदत...वो भी तो कहाँ छूट पायी है अब तक. 

खैर, इन दिनों फिर से गोलियों वाली नींद का सिलसिला चल पड़ा है. ऐसा नहीं कि मैंने बिना गोलियों वाली नींद के लिए कोशिश नहीं की. और मुझे नींद आ भी जाती है लेकिन फिर वो बीच में रात के बीच सफर में टूट जाती है और उसके बाद दुनिया भर के ख्याल मेरे पीछे पड़ जाते हैं. मैं घबरा जाती हूँ.  बार-बार पानी पीती हूँ, करवट लेती हूँ लेकिन नींद नहीं आती.

ऐसा ही कल रात भी हुआ. मैंने नींद की गोली नहीं खायी और खूब व्यायाम किया. पैदल चली. खुद को खूब थकाया और एक एनिमेशन फिल्म देखते हुए आराम से सो भी गयी लेकिन वही रात के आधे सफर में टक से खुल गयी नींद. और फिर सारे दुःख सिमटकर घेरकर बैठ गए. दुःख से डूबे चेहरे, लाचार लोग, मृत्यु, अवसाद, गले लगकर रो तक न पाने की पीड़ा...जब पौ फटी तो दिल को सुकून हुआ कि रात कटी तो सही. ये रात तो कट गयी लेकिन ये जो विशाल जीवन एक उदास रात में बदल गया है ये कैसे बदलेगा. पता नहीं.

तुम्हें जो बात बतानी थी वो ये कि जब मेरी नींद टूटती है तब बेटी की नींद भी टूटती है. वो सिरहाने चिंता में बैठी रहती है कि माँ क्यों बेचैन है. मैं चाहकर भी सोने का नाटक देर तक नहीं कर पाती. और फिर हम दोनों जागती रहती हैं. वो मेरी नींद की रखवाली करती है बरसों से. उसे ऐसा करते देखना दुःख से भरता है. जब उसे बेफिक्र होना चाहिए था तब वो फ़िक्र से भरी हुई है. फ़िक्र से भरी बेटियां माँ जैसी हो जाती हैं.

यह काला समय बीतेगा तब शायद हम वापस अपनी नींदों में लौटेंगे जो बचे रहेंगे. यह समय किसी दुस्वप्न सा है.  बचपन से एक सपना मुझे डराता था कि चारों तरफ लाशें ही लाशें...मैं उस सपने के डर से सोने से डरती रही. वो सपना अब हकीकत बन चुका है. न नींद में चैन लेने देता है न जाग में. हम सब आने भीतर गहन उदासी समेटे जीवन को सामान्य करने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन कर नहीं पा रहे. फोन उठाते डर लगता है, मैसेज चेक करते डर लगता है. जागते डर लगता है, सोते डर लगता है.


सुबह उठी हूँ तो हैपी मदर्स डे का कार्ड रखा मिला है सिरहाने...यही सुख जियाये हैं.
तुम अपना ख्याल रखना.

9 comments:

  1. नींद रोज़ रात का खेल है। नींद की गोलियां धोखेबाज होती हैं। स्वप्न और याद आते जाते रहते हैं। मां बेटी का प्रेम संवाद हमेशा ताज़ा रहता है। उस ताज़गी की एक छींट है यह लिखा हुआ।

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१० -०५ -२०२१) को 'फ़िक्र से भरी बेटियां माँ जैसी हो जाती हैं'(चर्चा अंक-४०६१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
  3. बहुत ही मार्मिक।
    इसका शीर्षक ही बहुत सार्थक है...यहाँ लिखी पूरी बातों को अपने अंदर समेटे हुए है।

    ReplyDelete
  4. जब उसे बेफिक्र होना चाहिए था तब वो फ़िक्र से भरी हुई है. फ़िक्र से भरी बेटियां माँ जैसी हो जाती हैं.---अच्छी और गहरी रचना...।

    ReplyDelete
  5. संवेदनाओं का सागर।
    आज तो समय ही ऐसा है माना, पर बचपन का एक सपना आपकी पूरी जिंदगी की बैचेनी बन गया यही सबसे दुखद हैं।
    सही लिखा आपने बेटियां फ्रिक में माँ बन जाती हैं,तभी तो कहते हैं औरत एक रिश्ते में अनेक किरदार जीती है।
    आपकी अभिव्यक्ति बहुत मर्मस्पर्शी हैं ।
    मातृ दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  6. जय मां हाटेशवरी.......
    आपने लिखा....
    हमने पढ़ा......
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
    दिनांक 11/05/2021 को.....
    पांच लिंकों का आनंद पर.....
    लिंक की जा रही है......
    आप भी इस चर्चा में......
    सादर आमंतरित है.....
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  7. जय मां हाटेशवरी.......
    आपने लिखा....
    हमने पढ़ा......
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
    दिनांक 11/05/2021 को.....
    पांच लिंकों का आनंद पर.....
    लिंक की जा रही है......
    आप भी इस चर्चा में......
    सादर आमंतरित है.....
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  8. सच कहा आपने यह समय किसी दुस्वप्न सा है. हृदयस्पर्शी सृजन

    ReplyDelete
  9. सही लिखा आपने बेटियां फ्रिक में माँ बन जाती हैं
    और इन बेटीमाँ के साथ मुश्किल घड़ियां भी कट जाती हैं....जो नहीं उसे छोड़ना और जो है उसमें मन को जोड़ना ही समाधान होता है इस मुश्किल का...पर ये इतना भी आसान कहाँ...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन।

    ReplyDelete