सुबह में ढेर सारी रात अब तक घुली हुई है. शुष्क मौसम सुर्ख लिबास में दाखिल हुआ है. उसकी हथेलियों पर इन्द्रधनुष खिला हुआ है. जैसे फूलों में कोई होड़ हो खिलने की. रास्तों से गुजरते हुए मालूम होता है जैसे किसी ड्रीम सीक्वेंस में हों, पीले, गुलाबी, लाल फूलों से पटे पड़े रास्ते हवा के झोंकों के साथ उड़कर काधों पर आ बैठते हैं....हाँ हाँ...रास्ते फूलों के साथ एक अलग ही ठसक लिए.
भीतर का मौसम भी बदल रहा है. न जाने कितने पत्ते मन की शाखों से मुक्त हुए. अभी नयी कोपलों के फूटने की आहट तो कोई नहीं लेकिन कोई उदासी भी नहीं. भीतर कुछ बदलता हुआ महसूस कर रही हूँ. जिन चीज़ों को देख पगलाया करती थी अब सिर्फ मुस्कुरा देती हूँ. जिन बातों पर हफ़्तों सुबकना जारी रहता था अब उन बातों पर भी मुस्कुरा देती हूँ.
सुबह पंछियों की आवाजों पर कान टिकाये हुए चाय पीना मध्धम आंच पर पकता सुख है. इंतजार कोई नहीं... फरहत शहजाद गुनगुना रहे हैं...
वो न समझा है, न समझेगा, मगर कहना उसे...
(इश्क शहर, मॉर्निंग राग)
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
06/04/2021 मंगलवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
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धन्यवाद
सुन्दर
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-4-21) को "हार भी जरूरी है"(चर्चा अंक-4028) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
भीतर के मौसम का बेहतर होना यकीनन एक अच्छे एहसास से भर देता है जिसके बाद बाहर का मौसम अपने आप ही सुहाना लगने लगता है । बहुत अच्छा लगा पढ़कर ।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteये मोर्निंग राग भी बढ़िया है ...
ReplyDeleteभीतर का मौसम बदलना और मधुमास की अनुभूति ही जीवन का बसंत है । भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं🙏 🙏
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर है, नमन
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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