धडकन सांसें नहीं बनती
अगर धड़के नहीं दोबाराकदम आगे नहीं बढ़ते
अगर पड़ते नहीं दोबारा
बूँद बरसात न बनती
अगर बरसे नहीं दोबारा
मौसम मौसम नहीं होते
अगर आते नहीं दोबारा...
मेरी आँखें नम हैं. थोड़ा सुकून है, थोड़ी उदासी. ज्यादा सुख. अभी-अभी एक प्रेम कविता पढ़कर नहीं नहीं, अभी-अभी एक प्रेम कविता देखकर उठी हूँ. प्रेम साँसों में सरक रहा है. नन्हे मासूम सवालों की मध्धम सी कोई लौ है जो प्रेम में उगते हैं उसी लौ की रौशनी में उसके जवाब झांकते हैं. कोई पढ़ पाता है कोई पढ़ने से चूक जाता है.
अभी-अभी मैं इस दोबारा नाम की कविता देखकर उठी हूँ. जैसे प्रेम आता है जीवन में वैसे ही यह फिल्म उतरी है परदे पर.
उन दोनों को वो दोनों पसंद थे. उन दोनों ने साथ रहना चुना. वो दोनों बहुत अच्छे थे. दोनों एक-दूसरे का ख्याल रखते थे. एक-दूसरे के दुःख में दुखी होते और सुख में झूम उठते थे. साथ रहते थे, साथ चलते थे फिर भी न जाने कैसे उन दोनों के बीच एक अबोला आ बैठा, एक उदासी ने जगह बना ली. शिकायतें कोई नहीं थी, गलती किसी की नहीं थी फिर भी कुछ था जो अटक गया था. वो क्या था...ये अटक जाना प्यार न होना तो नहीं, इसके ठीक उलट कुछ न अटका होना प्यार का होना भी तो नहीं. पता नहीं लेकिन यह पता करने की जद्दोजहद में दोबारा देखना सुख है.
अभी-अभी मैं इस दोबारा नाम की कविता देखकर उठी हूँ. जैसे प्रेम आता है जीवन में वैसे ही यह फिल्म उतरी है परदे पर.
उन दोनों को वो दोनों पसंद थे. उन दोनों ने साथ रहना चुना. वो दोनों बहुत अच्छे थे. दोनों एक-दूसरे का ख्याल रखते थे. एक-दूसरे के दुःख में दुखी होते और सुख में झूम उठते थे. साथ रहते थे, साथ चलते थे फिर भी न जाने कैसे उन दोनों के बीच एक अबोला आ बैठा, एक उदासी ने जगह बना ली. शिकायतें कोई नहीं थी, गलती किसी की नहीं थी फिर भी कुछ था जो अटक गया था. वो क्या था...ये अटक जाना प्यार न होना तो नहीं, इसके ठीक उलट कुछ न अटका होना प्यार का होना भी तो नहीं. पता नहीं लेकिन यह पता करने की जद्दोजहद में दोबारा देखना सुख है.
इस फिल्म को देखते हुए बिजॉय नाम्बियार के प्रेम में पड़ना लाजिमी है. उन्होंने फिल्म को कविता की तरह ही बरता है. कैमरे का काम हो, लोकेशन हो, बैकग्राउंड म्युज़िक हो, संवाद हों या फिर सर्द दिनों में हथेलियों पर आ बैठी धूप सी चुप हो...सब दाल में नमक जितना. शायद कई बार देखूँगी यह फिल्म कभी अलेप्पी के दृश्यों के लिए, कभी पार्वती और मानव कौल के अभिनय के लिए और कभी उन चुप्पियों के लिए जो संवादों से ज्यादा मुखर हैं, ज्यादा मीठी.
इसे देखने की इच्छा कबसे थी मन में आखिर सब्स्क्रिप्शन लेना ही पड़ा Zee5 का. मानव का अभिनय हमेशा की तरह शानदार है.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
गहराई से अवलोकन जो गहरे उतर रहा है ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
बहुत सुन्दर
ReplyDelete