("Painting named Waiting," by Agnieszka Dabrowska )
गुम जाते हैं तमाम शब्द
शब्दहीनता के आकाश में
उड़ान भरता है उजाले का पंछी
इच्छाओं की कोमल मछलियों का कोलाहल
मौन बन लहरों से टकराता है
अभिलाषाओं की लहरें उछालें मारते हुए
टूटती हैं प्रेमियों के पैरों से टकराकर
टप टप टप टपकता है जीवन
प्रेम का कटोरा लबालब भर देता है
कबूतरों के जोड़े मुस्कुरा कर पलटते हैं
और एक-दूसरे की गर्दन पर
टिकाते हैं सुनहली नीली गर्दन
स्मृतियों की बदलियाँ बरसती हैं
सफेद गुड़हल की पंखुड़ियों पर
मैं पंखुड़ियों से टपकती बूँदें
उतार लेती हूँ हथेलियों पर
देह उतर जाती है स्मृति के समन्दर में
समन्दर में उतर जाता है मीठा ज्वर
प्रेम के ज्वार से उपजा यह ज्वर
इंतजार के थर्मामीटर में मुस्कुराता है.
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteजाते हुए पैरों से
ReplyDeleteइंतज़ार कहना
आते हुए देखना
कुछ ना कहना
बस इंतज़ार सहना
पुकारते रहना
चुप आवाज़ से !
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 02 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteस्मृतियों की बदलियाँ बरसती हैं
ReplyDeleteसफेद गुड़हल की पंखुड़ियों पर
मैं पंखुड़ियों से टपकती बूँदें
उतार लेती हूँ हथेलियों पर
देह उतर जाती है स्मृति के समन्दर में
समन्दर में उतर जाता है मीठा ज्वर
वाह!!!
लाजवाब सृजन।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 3.9.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete