Tuesday, August 4, 2020

कोई दुःख की बात नहीं है


कोई है जो अभी-अभी उठकर चला गया है पास से. कौन है वो? जब तक वो पास था तब तक उसके पास होने के बारे में पता क्यों नहीं चला. ये कैसी बात है जो पास था के बारे में दूर जाने के बाद पता चलती है. हवा एकदम सर्द हो चुकी है मेरे शहर की. और मैं ऐसे शहर में हूँ जहाँ जर्रे जर्रे में रेत बसती है. ऐसे तो धरती पर प्रेम को बसना था. हाथ बढाती हूँ तो हथेलियों में हवा भर जाती है क्या इस हवा ने मेरे हाथों की लकीरों को छुआ होगा. क्या जब बारिशें हथेलियों में उतरती हैं तब वो मेरे हाथों की लकीरों को छूकर उनसे कुछ कहती होंगी. क्या कोई लकीर अपने साथ बहा ले गयी होंगी...मुझे लगता है मैं जीवन की बाबत कुछ भी नहीं जानती.

'मेरे हाथ में जो अख़बार था. उसमें एक खबर पर मेरी नजर गई. जो खबर थी वह भी बड़े होते जाने और कुछ न बन पाने के डर की दुःखद दास्तान से भरी थी. जिया खान नहीं रही. उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली.मेरे मन में आया कि ये जरूर कोई बड़ी हस्ती की बात होगी जिसने समाज पर गहरा प्रभाव डाला होगा. वरना आजकल मौत इतनी मामूली चीज़ है कि लोगों ने इस पर ध्यान देना बंद कर दिया है. कोई दुनिया से गुजर जाता है और हमारी आँखों में नमी नहीं आती. हम पल भर के लिए भी इस बात पर विचार नहीं करते कि एक सुंदर और कीमती जान ने इस दुनिया को छोड़ दिया है.' (कालो थियु सै के 'शायद' से)

मेरे सामने भी अख़बार है. उसमें भी ऐसी ही खबर है. नाम बदला हुआ है. कल कोई और अख़बार था उसमें भी ऐसी ही खबर थी. मुझे अख़बार की इन खबरों में वो खबरें भी दिखाई देने लगती हैं जो अख़बार में नहीं हैं. किसान, मजदूर, गरीब, कीटनाशक पीते दम्पति, पीट-पीटकर मार दिए गये लोग, अपने ही दुपट्टों को आकाश तक लहराने का ख्वाब लिए पेड़ों या पंखों से लटक गयी लड़कियां. बिना किसी गुनाह के सालों से जेलों में सजा काटते लोग और सीना चौड़ा कर हवा में कट्टा लहराते लोग.

वो आँखें जिनमें असीम सपने भरे थे उनके बारे में सोचना सुख देता है. उन सपनों को बचाने का जी करता है. सपनों से भरी तमाम आँखों को बचाने का जी करता है.

हमारे सामने दृश्य हैं जो हमें निगलने को आतुर हैं. चमचमाते दृश्य बजबजाते दुःख को छुपा देते हैं. हमें दुःख को छुपाना नहीं था उससे सीखना था. उससे जीवन को बुहारना था, दुनिया को सुंदर बनाना था. कल सारा देश दीवाली मनायेगा. कोई रामजी से मेरी अर्जी लगा दे काश कि वो इस धरती पर हो रहे अनाचार को रोक लें...

इस मनस्थिति में किशोर चौधरी को पढ़ना रुचिकर लग रहा है. किशोर बड़े और पैने सवालों को थमाते हैं. कभी शांत करते हैं कभी बेचैनी भी देते हैं. लिखना क्या है सिवाय अपनी बेचैनियों के और पढ़ना क्या है अपनी बेचैनियों को सँवारने के. जवाब तो जाने कहाँ होंगे...कहीं होंगे शायद....

3 comments:

  1. बहुत सुंदर

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 6.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
    https://charchamanch.blogspot.com
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  3. हर रोज ऐसी खबर पढके ऐसा लगता है कि हम संवेदनाहीन हो गए है।

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