Monday, May 25, 2020

एक दुःख जो लगातार भिगोता रहता है


'मेरे सामने समन्दर है...मेरी आँखों में समन्दर है...मैं दूर तक समन्दर को देखती हूँ...लेकिन महसूस करती हूँ कि नहीं ये मैं नहीं हूँ...मेरी आंसुओं से भरी आँखों को खूबसूरत फूल दिखते हैं, जो अभी खिले नहीं हैं. मैं खुद को लहरों में पिरो देना चाहती हूँ. समन्दर की लहर हो जाना चाहती हूँ. क्यों यह संभव नहीं हो सकता.

मैं जानबूझकर अनखिले फूलों को छूती हूँ. लहरों को महसूस करती हूँ. चिड़ियों से बातें करती हूँ. मैं अपने ख्यालों को जानबूझकर दूर कहीं ले जाती हूँ. लेकिन एक दुःख है जो लगातार मेरा हाथ थामे रहता है. एक दुःख जो लगातार मुझे भीतर से भिगोता रहता है. मैं खुश होने की कितनी भी कोशिश करूँ. क्या इसका अर्थ यह है कि मैं कभी खुश नहीं हो सकती...'

(मारीना पुस्तक से)

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