Tuesday, April 21, 2020

धैर्य चुकने लगा है

चुकने लगा है राशन 
तेल, मंजन
गैस सिलेंडर भी चुकने ही वाला है
न नहीं ले सके थे हम दो सिलेंडर
ऐसे ही चल रहा था काम
चुकने लगी हैं दवाइयाँ
जो बिना प्रिस्क्रिप्शन के मिलती नहीं
और प्रिस्क्रिप्शन देने वाले डाक्टर
व्यस्त हैं कहीं और

चुकने लगी है हिम्मत
धैर्य चुकने लगा है
रोजमर्रा के जिन कामों में झोंककर
खुद को संभाल रहे थे जरा
वो काम थकाने लगे हैं
न न आईना देखने को जी नहीं करता
उसमें उदासी दिखती है

सूखने लगी है वो बेल
जिसमें झमक के आने थे
मोहब्बत के फूल
उसकी जड में
जाने कौन डाल गया नफरत का मठ्ठा

नदियाँ ज्यादा मीठी हो चली हैं
और हम ज्यादा कड़वे...
(फोटो- साभार गूगल)

3 comments:

  1. बिल्कुल सत्य एवं सटीक आदरणीया । बहुत खूब ।

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  2. बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति 👌

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  3. बहुत सुंदर और सार्थक सृजन

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