उसके हरे में थोड़ा कत्थई घुलने लगा था
डाल मजबूती से पकड़ी हुई थी उसने
वो पत्ती मेरी उम्र की होगी शायद
एक तितली मिली
वो फूलों के ऊपर चक्कर काट रही थी
खुश लग रही थी,
उदास तितली कभी मिली नहीं मुझे
या मुझे तितलियों की उदासी
पढनी आती नहीं
एक पंछी मिला
वो मुझसे मिलने आया था
उसने शायद पढ़ी थी विनोद कुमार शुक्ल की कविता
और वो मुझसे मिलने आया
क्योंकि मैं उससे मिलने नहीं गयी
वो अपने साथ नदी क्यों नहीं लाया?
एक सडक मिली मुझे
जो कहीं नहीं जाती थी
एक मौसम मिला
जो अपने तमाम वैभव के बावजूद
मुस्कुराहट गुमा आया था कहीं
एक बच्चा मिला जो
जिसका बचपन खो गया था
वो उसे ढूंढ भी नहीं रहा था
एक आईना मिला
जिसने झूठ बोलना सीख लिया था...
कुछ न कुछ सीख छुपी रहती है हर चीज में बस देखने के लिए आंखे चाहिए उस तरह की
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
वाह!!!
ReplyDeleteकमाल का सृजन...अद्भुत...
लाजवाब।
वाह!!!!!! 👌👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और भावपूर्ण ।
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