जब किसी से मिलने के बाद उसका मिलना छूट जाता है स्मृतियों में, जब कोई बात कहे सुने जाने के बाद जिन्दगी में ख़ास जगह घेरे रहती है, जब कोई किताब पढ़े जाने के बाद चलती रहती है जेहन में हलचल करती हुई, जब कोई फिल्म स्क्रीन पर अपने हिस्से की अवधि घेर चुकने के बाद मन के हिस्सों पर काबिज रहती है तो लगता है कि जिन्दगी आसपास ही है कहीं. हाल ही में ऐसी ही फिल्म से गुजरना हुआ. दीप्ति नवल की फिल्म 'दो पैसे की धूप चार आने की बारिश.' मैंने फिल्म पर कुछ भी लिखने से खुद को बचाए रखा कि फिल्म को भीतर बचाए रखना अच्छा लग रहा है इन दिनों. अब उस बचे हुए को शब्दों में सहेजना भी सुख हुआ,
फिल्म फ्रेम दर फ्रेम, डायलाग दर डायलाग जिस रूमानियत में इंसानियत को गढ़ती है वो मोहता है. फिल्म बादलों की है, बारिश की है, एक प्यारी सी बिल्ली की है, एक चलने और बोलने से महरूम बच्चे की है और है दो बेहद खूबसूरत इन्सान जूही और देव की. रिश्तों की कोई डोर किसी को किसी से नहीं बांधती लेकिन इंसानियत की, जिन्दगी से मिले थपेड़ों की, भूख की, प्यास की जीने की इच्छा की मौसमों से प्यार करने की डोर फिल्म में सबको एक दूसरे से बांधती है.
एक सेक्स वर्कर स्त्री और एक संघर्ष याफ्ता गीतकार किस तरह जिन्दगी के दो अलग-अलग सिरों पर खड़े होकर भी बंधे हैं फिल्म इसे बयां करती है.अमूमन खींचतान कर स्त्री पुरुष सम्बन्ध को सेक्सुअल डिजायर में कन्वर्ट कर ही दिया जाता है, फिल्म में भी यह कन्वर्जन है लेकिन यह बताने के लिए कि यह कितना गैर जरूरी है.
सेक्सुलिटी से परे इन्सान के रूप में स्त्री पुरुष का एक-दूसरे से कनेक्ट करने का भी एक रिश्ता होता है. हम सब अपनी कमियों, कमजोरियों से बंधे हैं लेकिन उन्हें उसी रूप में स्वीकारना और एक-दूसरे के होने से खुद को समृद्ध करना यही तो जीवन है.
फिल्म में बहुत सारा अमूर्त प्रेम है जो पूरी फिल्म में बरसता रहता है. यह प्रेम किरदारों का एक-दूसरे से तो है ही उससे इतर फिल्म की लेखिका,निर्देशक दीप्ति नवल का उनके तमाम दर्शकों से है. वो स्क्रीन पर बरसता है मुसलसल वो कुछ और नहीं सुंदर दुनिया का ख्वाब है...जिसे एक पीले गुब्बारों से सजा ऑटो लेकर बार-बार गुजरता है.
मनीषा कोइराला और रजित कपूर दो सुंदर आत्माओं की मानिंद मिलते हैं खिलते हैं और महकते हैं...
कोई यूँ ही तो नहीं बारह मास मौसम बेच सकता. गुलज़ार और सन्देश शांडिल्य ने मिलकर ये मौसम बुने हैं और रचे हैं खूबसूरत गीत मीठे संगीत में ढले-
ख्वाब के बागानों में खिल जाएगी
गर ढूंढोगे तो जिन्दगी फिर मिल जाएगी...
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteI am in love with this article.
ReplyDeleteBest post ever.
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