Friday, November 1, 2019

पर्व, प्रगतिशीलता और हम


जब मैं कॉलेज के दिनों में थी तब पहली बार नाम सुना था छठ पूजा का. एक दोस्त के घर से आया प्रसाद खाते हुए इसके बारे में थोड़ा बहुत जाना था. नदी में खड़े होने वाली बात दिलचस्प लगी थी तो अगली साल जब यह पर्व आया तो मैंने इसे देखने की इच्छा जताई और दोस्त की मम्मी की उपवास यात्रा में शामिल होकर गोमती किनारे जा पहुंची. बहुत गिने-चुने लोग ही थे वहां. बाद में कुछ और साथियों से बात की तो ज्यादातर को पता नहीं था इस पर्व का. उत्तर प्रदेश में कुछ ही जगहों पर यह मनाया जाता था शायद मूलतः बिहार में मनाया जाता है ऐसा बताया गया.

छुटपन में करवा चौथ का व्रत रखने वाली स्त्रियाँ बड़ी आकर्षक लगती थीं लेकिन वो सहज ही नहीं दिखती थीं. पूरे मोहल्ले में दो-चार. उनकी सजधज देखने का चाव होता था.

गणेश पूजा, डांडिया के बारे में तो अख़बारों में पढ़ते थे या टीवी में छुटपुट देख लिया. सामने से देखा नहीं.

आज हर उपवास, पर्व की रेंज बढ़ गयी है. बाजार सजे हुए हैं, अखबार रंगे हुए हैं, राज्य सरकारें छुट्टी घोषित कर रही हैं. करवा चौथ को स्त्री सम्मान दिवस तक कहा जाने लगा है. स्त्री सम्मान दिवस घोषित किये जाने पर निहाल होने वाली स्त्रियों ने इस पर कोई सवाल खुद से नहीं पूछा कि किस तरह उनका सम्मान है यह ये अलग ही सवाल है.

सोचती हूँ पिछले दो दशकों में जितनी तेजी से हम धार्मिक अनुष्ठानों, पर्वों के प्रति सक्रिय हुए हैं, जितनी तेजी से इन अनुष्ठानों ने राज्यों की, वर्गों की सीमायें पार की हैं अपनी महत्ता के आगे सरकारों को नत मस्तक कराया है काश उतनी ही तेजी से धर्मों की, जातियों की ऊंच-नीच की बेड़ियाँ तोड़ने, एक-दूसरे के प्रति संवेदनशील होने की ओर अग्रसर भी हुए होते. धर्म, संस्कृति और पर्व अब सब किसी और के कंट्रोल में हैं वो जो जानते हैं इसकी यूएसपी. कि कैसे इनका इस्तेमाल किया जा सकता है. धर्मों का सकारात्मक इस्तेमाल करना आखिर कब सीखेंगे हम.

मुझे लगता है इसकी कमान स्त्रियों को अपने हाथ में लेनी होगी.

4 comments:

  1. धर्म, पर्व . जात पात का बढचढ कर महिमा मंडित करने का श्रेय टी वि चेनेलोको जाता है , भोली भाली जनता में प्रिय होने के लिए यह सहज सरल रास्ता है |इसके बदले अगर .जात-पात ,भेद भाव , कुसंस्कार मिटाने में सहयोग करते तो भारतीय समाज प्रगतिशील समाज होता | अभी समाज को अन्धविश्वासी बनाया जारहा है |

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  2. जिन आडम्बरों, अंधविश्वासों, अनैतिक परम्पराओं के दलदल से हम बड़ी मुश्किल से निकलने लगे थे वहाँ एक साजिश के तहत हमें वापिस धकेला जा रहा है......बेरोजगारी,भुखमरी, गरीबी , भेदभाव जेसे मुद्दों से जनता को दूर किया जा रहा है

    सत्य रचना

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  3. बाजारीकरण का जाल है
    जिसमे मासूम लोग फंस रहे हैं
    स्त्रियां क्या नही कर सकती।

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  4. यह सभ्यता के अर्थशास्त्र का संस्कृति के समाजशास्त्र के साथ गँठजोड़ है।

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