कुछ खो दिया है पाई के
कुछ पा लिया गँवाई के...
बारिश की चुनरी ओढ़े सावन की कोई शाम गुलज़ार साहब के पहलू में सिमटकर बैठी हो तो दिल के हाल क्या कहें. बिलकुल ऐसा ही दिलफरेब मौसम बना कविता कारवां की देहरादून की बैठक में. जिस्म सौ बार जले फिर वही मिट्टी का ढेला है, रूह देखी है कभी रूह को महसूस किया है...गुलज़ार साहब की नज्म को उन्हीं की आवाज में सुनने से शाम का आगाज़ हुआ और यह आगाज़ उनकी तमाम नज्मों, गीतों, त्रिवेणियों के जरिये परवान चढ़ता गया. बाहर धुला धुला सा मौसम इतना हरा था मानो किसी रेगिस्तान की लड़की की दुआ क़ुबूल हो गयी हो. और गुलज़ार साहब की शोख मखमली आवाज में उनकी ही नज्मों का जादू.
कविताई में डूबी इस पहाड़ी शाम में 'बूढ़े पहाड़ों पर' का जिक्र कैसे न होता भला. विशाल भारद्वाज, सुरेश वाडकर और गुलज़ार साहब की त्रयी 'बूढ़े पहाड़ों पर' को सुनना किस कदर रूमानी था इसे बयान करना मुश्किल है. इसके बाद एक-एक कर 'अबके बरस भेज भैया को बाबुल', 'किताबें करती हैं बातें', 'बारिश आती है तो पानी को भी लग जाते हैं पाँव', 'प्यार कभी इकतरफा नहीं होता', 'अभी न पर्दा उठाओ', 'आँखों को वीजा नहीं लगता', 'यार जुलाहे', 'मुझको इतने से काम पर रख लो', 'मोरा गोरा अंग लई ले' सहित रचनाओं के साथ शाम गुलज़ार हुई.
गुलज़ार साहब से मुलाकातों के किस्से छिडे, उनकी फिल्मों का जिक्र हुआ, उनकी कविता के अलावा उनके प्रोज उनकी कहानियों पर भी बात हुई. बात हुई कि किस तरह बंटवारे की खराशें उनके लिखे में तारी हैं. गुलज़ार पोयट्री के साथ पोलिटिकल जस्टिस और पोलिटिकल बेचैनी को पोयटिक बनाने में माहिर हैं यह उनकी फिल्म आंधी, हू तू तू आदि में अच्छे से दिखता है. शाम थामे नहीं थम रही थी. गुलज़ार यूँ ही तो गुलज़ार नहीं हुए होंगे कि उनका जिक्र होगा तो जिक्र अमृता आपा का भी होगा और मीना कुमारी का भी और किस तरह उनका नाम गुलज़ार पड़ा इसका भी जिक्र होगा ही, सो हुआ. शाम बीत गयी लेकिन हम सब बैठक से गुलज़ारियत लिए लौटे हैं.
18 अगस्त को उनका जन्मदिन है देहरादून में उनके दीवानों ने उनका जन्मदिन एडवांस में मना लिया...मौसम ने इस शाम में खूब रंग भरे...
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteजगजीत सिंह के साथ एक एलबम आया था...कोई बात चले...उसकी कुछ लाइनें साझा करने से रोक नहीं पा रहा हूँ...
ReplyDeleteआओ हम सब पहन लें आईने...सारे देखेंगे अपना ही चेहरा...सबको सारे हसीं लगेंगे यहाँ...
गुलज़ार साहब अपने आप में एक इंस्टीट्यूशन हैं...एक लाजवाब पोस्ट के लिये... धन्यवाद...👌👌👌
जगजीत सिंह के साथ एक एलबम आया था...कोई बात चले...उसकी कुछ लाइनें साझा करने से रोक नहीं पा रहा हूँ...
ReplyDeleteआओ हम सब पहन लें आईने...सारे देखेंगे अपना ही चेहरा...सबको सारे हसीं लगेंगे यहाँ...
गुलज़ार साहब अपने आप में एक इंस्टीट्यूशन हैं...एक लाजवाब पोस्ट के लिये... धन्यवाद...👌👌👌